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आचार्य के अनेक प्रकार
शास्त्रों में आचार्य भगवन्त नय-निक्षेपादि दृष्टि से अनेक प्रकार के दर्शाए हैं । १) नामाचार्य, २) स्थापनाचार्य, ३) द्रव्याचार्य, ४) भावाचार्य आदि भेद दर्शाए गए हैं। भावाचार्य सर्वाधिक गुणवाले होते हैं । क्रमशः गुणों की न्यूनता नामाचार्य में होती है। इसी तरह उपाध्याय एवं साधु के भी नामसाध्वादि भेद-प्रभेद सेस्वरूप समझना चाहिए। उत्कृष्ट आचार्य-भावाचार्य कहलाते हैं। जिनमें सब गुणों की विद्यमानता होती है। नामाचार्यादि में सभी गुणों की विद्यमानता नहीं भी होती हैं। आचार्य पद के ३६ गुणोंकी एक छत्तीसी- । १) प्रतिरूप गुणधारक, २) तेजस्वी गुणधारक, ३) युगप्रधान गुणधारक ४) मधुरवाक्य गुणधारक ५) गम्भीरता गुणधारक ६) सुबुद्धि गुणधारक ७) उपदेश तत्परता गुणधारक ८) अपरिश्रावि गुणधारक ९) चन्द्रवत्सौम्य गुणधारक १०) विविधाभिग्रमति . ११) अविकथ गुणधारक १२) अचपल गुणधारक
गुणधारक १३) संयमशील गुणधारक १४) प्रशांतहृदय गुणधारक १५) क्षमा गुणधारक १६) मार्दव गुणधारक . १७) आर्जव गुणधारक १८) निलोभित गुणधारक १९) तपोगुणयुक्त . २०) संयम गुणयुक्त २१) सत्यगुणधारक २२) अकिंचन्य गुणयुक्त २३) ब्रह्मचर्य गुणयुक्त २४) शौच गुणधारक २५) अनित्यभावना भावुक २६) अशरण भावना भावुक २७) संसार भावना भावुक २८) एकत्व भावना भावुक २९) अन्यत्व भावना भावुक ३०) अशुचि भावना भावुक ३१) आश्रव भावना भावुक ३२) संवर भावना भावुक ३३) निर्जरा भावना भावुक . ३४) लोक स्वभाव भावना : ३५) बोधिदुर्लभ भावना ३६) धर्मसाधक अरिहंता
भावुक
आदि दुर्लभ भावना भावित इस तरह आचार्य भगवंत के ३६ गुणों के समूहवाली एक छत्तीसी के ३६ गुण यहाँ दिये हैं । ऐसी दूसरी-तीसरी आदि छत्तीसियाँ भी गुणों के भण्डार समान हैं। उपाध्याय पद के २५ गुण
उपाध्यायजी महाराज जो मुख्यरूप से वाचक-पाठक कहलाते हैं । ज्ञानदान का ही मुख्य कार्यक्षेत्र हैं उनका । पठन-पाठन करना । सूत्रार्थ की वाचना देनेवाले वाचक
भावुक
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आध्यात्मिक विकास यात्रा