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________________ . 1 जैसे चारों तरफ काटों की वाड बनाकर रखता है। जिससे खेती - पाक सुरक्षित सुव्यवस्थित रह सके । किसी भी पशुओं-मनुष्यों आदि द्वारा उसे नुकसान न पहुँचे, ऐसा लक्ष रखकर काँटे की वाड बनाई जाती है ठीक उसी तरह मोक्षमार्ग की साधना के मार्ग में आगे बढनेवाला साधक जो साधु बनकर जगत का गुरु बना है उसे इन ब्रह्मचर्य की नौं वाडों का पालन करना ही चाहिए। जिससे ब्रह्मव्रत का अच्छी तरह पालन हो सके । ब्रह्मचर्य के १० समाधिस्थान इन नौं वाडों के जैसे श्री उत्तराध्ययन शास्त्र आगम में १० प्रकार के समाधिस्थान बताए हैं इमे खलु तेथेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठ्ठाणा पण्णत्ता - जे भिक्खु सोच्चा निसम्म संजम बहुले, संवर बहुले, समाहि बहुले गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा ॥ ३ ॥ 1 तं जहा विवित्ताई सयणासणाई सेविज्जा से निग्गंथे । १) णो इत्थीपसु पंडगसत्ताई सयणासणाई सेविता हवइ ... से निग्गंथे । २) णो इत्थीणं कथं कहेत्ता हवाइ से निग्गंथे । ३) णो इत्थीहिं सद्धि सन्निसिज्जागए विहरित्ता हवइ - से निग्गंथे । ४) णो इत्थीणं इंदियाइं मणोहराई मनोरमाइं अलोएता णिज्झाइता हवड़, से निग्गंथे । ५) णो इत्थीणं कुर्डुतरंसि वा दूसंतरंसि वा भित्तित्तरंसि वा कूइयसद्दं वा रुइयसद्दं वा गीयसद्दं वा हसियसद्दं वा थाणियसद्दं वा कंदियसद्दं वा विलवियसद्दं वा सुणित्ता भवझ से निग्गंथे । ६ ) णो इत्थीणं पुव्वरयं वा पुव्वकीलियं वा अणुसरित्ता हवझ से निग्गंथे ७) णो पणीअं आहारं आहारेत्ता हवइ से निग्गंथे । ८) णो अइमायाए पाणभोअणं आहरेत्ता हवझ से निग्गंथे । ९) णो विभूसाणुवाई हवझ से निग्गंथे । १०) णो सद्द-रूव-रस-गंध-फासाणुवाई हवइ से णिग्गंथे । I सुधर्मास्वामी गणधर भगवंत अपने शिष्य जंबुस्वामी को कह रहे हैं - हे जंबु ! स्थविर भगवंतों ने ब्रह्मचर्य के ये १० समाधिस्थान बताए हैं- इनका साधु को श्रवण करके, सुन कर हृदय में अवधारण करके, संयम बहुल, संवर बहुल, समाधि बहुल, गुप्त, गुप्तेन्द्रिय, गुप्त ब्रह्मचारी और सदा ही अप्रमत्त बनकर मोक्षमार्गपर विहार करनेवाले बनना चाहिए । वे दश समाधिस्थान इस प्रकार हैं- १) स्त्री- पशु - नपुंसक रहित शयन और आसन का साधु सेवन करें। सहित का सेवन - उपयोग न करें । २) जो स्त्रीकथा न करें आध्यात्मिक विकास यात्रा ७२४
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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