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+ ५ प्रकार के महाव्रतों को धारण करनेवाले, ५ पंचविध आचारों का उत्तम पालन करनेवाले,
५ प्रकार की समितिओं का सुंदर आचरण करनेवाले,
३ मन-वचन - और काया के तीनों योगों की ३ गुप्तिवाले, ३६ ऐसे छत्तीस गुणों के धारक मेरे गुरु भगवंत हैं ।
उपरोक्त इस छोटे से पंचिदिय - गुरुस्थापना सूत्र में गुरु कैसे होने चाहिए ? उनके स्वरूप को दर्शाने के लिए ३६ गुणों का विश्लेषण दिया है। जो जितेन्द्रिय हो अर्थात् पाँचों इन्द्रियों को काबू में रखनेवाले हो, स्वयं इन्द्रियों के गुलाम न होकर उनको अपने वश में रखने वाले गुरु होने चाहिए। क्योंकि इन्द्रियों का गुलाम सब प्रकार के पाप कर लेता है । अतः पाँचो इन्द्रियों के २३ विषयों के सुख-भोगों को भोगने की वृत्ति के सेंकडों पापों से बचे हुए गुरु श्रेष्ठ कक्षा के होने चाहिए । संसार के संसारी जीव इन्द्रियों के गुलाम होकर - उनके अधीन होकर सेंकडों पाप करते हैं ।
इसी तरह ब्रह्मचर्य पालने में सक्षम-समर्थ होने चाहिए । जब सारी दुनिया अब्रह्म - आचरण में डूबी हुई है ऐसी परिस्थिति में गुरु सारी दुनिया के अब्रह्म सेवन के दुराचार - व्यभिचार के पाप से ऊपर उठे हुए ... विलक्षण कक्षा के ही होने चाहिए । ब्रह्मचारी ही जगत् का सर्वोच्च - सर्वश्रेष्ठ कक्षा का विलक्षण व्यक्तित्व धारक होता है । ऐसे ब्रह्मचर्य को शुद्धतम कक्षा का पालने के लिए .. शास्त्रकारों ने जो ब्रह्मचर्य की नौं वाडों का अनोखा स्वरूप बताया है वह इस प्रकार का है । १) हास्यादि पूर्वक स्त्रीकथादि विकथा का त्याग करना । २) स्त्री - नपुंसकादि के समानासन पर बैठना तक नहीं । ३) स्त्री के अंगोपांग आदि को कामेच्छा की तीव्रतावाली दृष्टि से देखना भी नहीं । ४) स्त्री-पुरुषों की कामक्रीडा - रतिक्रीडा - हाव-भावादि दीवार के पीछे छिपकर या छेदादि द्वारा भी नहीं देखना चाहिए । ५) भूतकाल में गृहस्थाश्रम में पहले स्त्री के साथ के भोग-संभोगादि का पुनःस्मरण चिन्तन भी नहीं करना । ६) कामवर्धक, वासना के उत्तेजक आहार - सरस स्वादिष्ट -गरिष्ट भोजन का भी सर्वथा त्याग करना चाहिए। ७) इसी तरह अति आहार, रात्रिभोजन आदि भी साधु के लिए सर्वथा वर्ज्य है । ८) स्त्री - नपुंसकादि जहाँ बैठे हो वहाँ दो घडी तक बैठना नहीं, उसके आसन पर भी नहीं बैठना । तथा ९) शरीर शोभा, देह सुश्रूषा, अंग विभूषादि भी नहीं करनी चाहिए ।
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इस प्रकार ब्रह्मचारी के लिए ब्रह्मचर्य पालने के लिए सहयोगी - सहकारी ऐसी नौं वाडों का स्वरूप बताया है । एक किसान बीज बोकर उस खेती की रक्षा करने के लिए
साधना का साधक - आदर्श साधुजीवन
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