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से है। भारतीय नागरिकत्व भी सब का सामान्य है । सभी समान रूप में मनुष्य ही है। फिर भी पद और सत्ता की दृष्टि से वे ऊँची कक्षा में हैं। ऊँचे पद पर है इसलिए.. उत्कृष्ट कक्षा के कहे जाते हैं। . - ठीक इसी तरह जैन शासन रूपी राज्य व्यवस्था में आचार्य-उपाध्याय एवं साधु इन तीन की व्यवस्था की गई है। आचार्य भगवंत प्रेसिडेन्ट-राष्ट्रपति के स्थान पर हैं। उपाध्यायजी महाराज प्रधानमंत्री की सत्ता पर बिराजमान हैं। तथा अन्य मंत्रियों के जैसे साधु महाराज हैं। या पहले राज्य में राजा-मंत्री-सेना आदि की व्यवस्था थी। जैन शासनरूपी राज्य में राजा के समकक्ष आचार्य भगवंत हैं। राजा के मुख्य सचिव स्वरूप (प्रधान) मंत्री स्वरूप उपाध्यायजी महाराज है । तथा सेना जो कार्यशील है, या जनता के जैसी व्यवस्था के स्थान पर साधु महाराज है । इस तरह आचार्य-उपाध्यायजी महाराज व्यवस्था की दृष्टि से सत्ता के पद पर आरुढ है । परन्तु मूलतः वे भी साधु ही हैं। मात्र पद-पदवी की दृष्टि से वे ऊँचे हैं । ऐसे आचार्य, उपाध्याय और साधु इन तीनों परमेष्ठियों की स्थापना गुरु पद पर की है। ३६ गुणधारक गुरु की श्रेष्ठता
जैन शासन में एक अनोखी व्यवस्था है। भगवान को भी पहचानने के लिए गुणों के द्वारा परीक्षा करने के लिए कहा और इसी तरह गुरु की परीक्षा करने के लिए गुणरूप कसौटी का पाषाण दिया है। यदि इन ३६ गुणों के धारक हो तो ही उनको गुरु मानना अन्यथा नहीं। ऐसा विधान जैन शास्त्रों ने करके गुरु का स्थान गुणयुक्त ऊँचा श्रेष्ठ ही रहने दिया है । गुरु की गरिमा गिरने नहीं दी। ऐसे ३६ गुणों का स्वरूप पंचिंदिय सूत्र में इस प्रकार दिया है
पंचिंदिअ संवरणो, तह नवविह बंभचेर गुत्तिधरो। चउविह कसाय मुक्को, इअ अट्ठारस गुणेहिं संजुत्तो ॥ ॥१॥ पंच महव्वय जुत्तो, पंच विहायार पालण समत्थो।
पंच समिओ ति गुत्तो- छत्तीस गुणो गुरु मज्झ । ५ इन्द्रियों का संवरण करनेवाले, ९ प्रकार की ब्रह्मचर्य की वाड के धारक, ४ प्रकार के क्रोध-मान-माया लोभादि कषायों के त्यागी, १८ इस प्रकार के १८ गुण और...
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आध्यात्मिक विकास यात्रा