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________________ और क्या दूसरों का कल्याण कर पाएँगे? ऐसे वेषधारी संन्यासी-बाबा-फकीर- जोगी आदि कई बैठे हैं जो स्वयं ही मोक्ष मार्ग पर नहीं है, अरे ! जो स्वयं अभी तक मोक्ष मार्ग को पहचान ही नहीं पाए हैं ऐसे मिथ्यात्वी पथभ्रष्ट गुरु क्या करेंगे? किसका कल्याण करेंगे? संभव ही नहीं है अतः “स्वयं नष्टा परान्नाशयति" की कहावत चरितार्थ लगती है। सच्चे धर्मगुरु दूसरे सम्यक्त्वी-सम्यग्दृष्टि मोक्षगामी-मोक्षमार्गी ऐसे जैन श्रमण-साधु जो आत्मा-परमात्मा-कर्म-धर्म और मोक्ष आदि तत्त्वों का, जगत् और इस सृष्टि का वास्तविक स्वरूप समझकर बैठे हैं, चरम सत्य, जो अच्छी तरह जानकर बैठे हैं ऐसे आत्मार्थी मोक्षार्थी ही सच्चे धर्मगुरु कहलाने योग्य हैं । स्वयं अपनी आत्मा का कल्याण कर रहें हैं और अन्य जीवों को भी मोक्ष प्राप्ति का बिल्कुल शतप्रतिशत शुद्ध सच्चा मार्ग दिखाना और उस मार्ग पर चढाना-चलाना आदि का उत्तम काम करनेवाले महापुरुष हैं ऐसे महात्मा सच्चे धर्मगुरु हैं। आध्यात्मिक विकासरूप मोक्षमार्ग के गुणस्थानों पर चढते हुए छठे-सातवें सर्व विरति के गुणस्थानों पर चढकर जिन्होंने अपना विकास काफी ऊँची कक्षा तक कर लिया है। और जो दूसरों को भी सतत इसी ऊँचे आदर्श पर लाने के लिए पुरुषार्थरत हैं । संसार के पापों के जो सर्वथा त्यागी हैं, त्याग साधना में जगत में सर्वश्रेष्ठ हैं। और तपमार्ग से आत्म शुद्धि की काफी ऊँची कक्षा तक जो पहुँच चुके हैं ऐसी तप और त्याग की संस्कृति के संस्कारों से सुवासित जिनका ऊँचा जीवन है.. सचमुच जो त्याग की जीवंतमूर्ति है, और जो तपोमूर्ति है, ऐसे धर्मगुरु से ऊँचे दूसरे कौन मिल सकते हैं ? संभव ही नहीं है। धर्मगुरुओं में तीन प्रकार की व्यवस्था___इस ऊँचे आदर्श को सम्प्राप्त सच्चे धर्मगुरुओं में तीन विभाजन करके अलग अलग व्यवस्था की गई है । १. आचार्य २. उपाध्याय और ३. तीसरे साधु । सच देखा जाय तो ये तीनों साधु ही है। आचार्य और उपाध्याय दोनों मूल में तो साधु ही हैं। मात्र पंद-अधिकार की व्यवस्था से वे आचार्य-उपाध्याय है । लेकिन मूलतः वे साधु ही हैं। जैसे एक सर्जन डॉक्टर है, दूसरा जनरल प्रेक्टीशनर डॉक्टर है, तीसरा कोई आँख या कानादि अंग विशेष का स्पेशालिस्ट विशेषज्ञ हो ऐसे सभी डॉक्टर मूलतः तो डॉक्टर ही हैं। लेकिन जनरल प्रेक्टिशनर्स की अपेक्षा विशेषज्ञ और सर्जन की कक्षा ज्यादा ऊँची है। दूसरे दृष्टान्त में कोई राजा प्रधानमंत्री है, कोई राष्ट्रपति है, कोई राज्यमंत्री है, और कोई सामान्य जनता के रूप में व्यक्ति है । ऐसी सभी प्रकार की व्यक्तियों में व्यक्तित्व सामान्यरूप साधना का साधक-आदर्श साधुजीवन ७२१
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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