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२५) ऐश्वर्य-वैभव-भोगविलास का | २५) ऐश्वर्य-वैभव-भोगविलास का प्रदर्शन करनेवाला।
सर्वथा त्यागी। २६) हीरे मोती रत्न-सोने-चांदी का । २६) हीरे-मोती-रत्न-सोने-चांदी का संग्रही।
सर्वथा त्यागी। २७) धातु पात्र बर्तनादि का
२७) धातु पात्र का त्यागी-काष्ठपात्री। संग्रही-उपयोगी। २८) रंग-बिरंगी फैशनेबल अनेक २८) रंगरहीत शद्ध श्वेत वस्त्रधारी (बिना कपडोंवाला।
सीए हुए)। २९) घर बंगले में आजीवन रहनेवाला। | २९) मठाधीश न बनकर सर्व धर्मार्थ
| परिभ्रमण। ३०) ज्ञान-ध्यान-साधना की रुचि ३०) ज्ञान-ध्यान-योग साधना में - रखता है।
प्रवीण। ३१) अभक्ष्य-अनन्तकाय का त्याग कर | ३१) अभक्ष्य-अनन्तकाय का सर्वथा . सकता है।
त्यागी। ३२) स्नान, शोभा, देहसुश्रुषा के बिना न | ३२) स्नान, शोभा, देहसुश्रुषा का सर्वथा रहनेवाला।
निषेध। ३३) १८ पापस्थानों का सेवन
३३) १८ ही पापस्थानों का त्याग करनेवाला।
करनेवाला। इस तरह गृहस्थ और साधु के जीवन में कितना अन्तर-भेद है ? दोनों के बीच कितनी साम्यता-वैषम्यता है, दोनों का जीवन कैसा है यह स्वरूप इस तुलनात्मक तालिका के पढने से ख्याल आ सकता है । एक की पूर्व दिशा है तो दूसरे की सर्वथा पश्चिम ही है। साधु उत्तर में ऊपर चढता है तो गृहस्थी दक्षिण की तरफ नीचे उतर रहा है ऐसा लगता है । लेकिन गृहस्थ को ऊँचे आदर्श का लक्ष्य रखकर आगे बढ़ने से साधु जीवन अच्छी तरह प्राप्त हो सकता है । उपरोक्त तुलना में जैन श्रमण के साधु जीवन को केन्द्र में रखकर तुलना की गई है । अन्य धर्मी संन्यासी-बाबा-फकीर के साथ तुलना नहीं की है । जैन साधु का जीवन संन्यासी-बाबा-फकीरों से भी हजार गुना ज्यादा त्यागी होता है । त्याग की कक्षा में श्रेष्ठतम जीवन जैन साधु का होने से, वैसे उनके व्रत-महाव्रत नियम-सिद्धान्तादि होने से त्याग की आदर्श मूर्ति समान जैन साधु होने से तुलना उनके साथ की गई है। यह भेद वैसे अनुभव सिद्ध भी है। फिर भी कोई भी व्यक्ति
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आध्यात्मिक विकास यात्रा