________________
सामोतीति साधु = सिद्धि-मोक्ष के मार्ग की जो सम्यग् उपासना करता है वह साधु कहलाता है । इससे विपरीत असाधु कहलाएगा।
सिद्धि के प्रति श्रद्धा तो चौथे सम्यक्त्व के गुणस्थान पर ही जग गई थी। बना ली थी। सच्ची श्रद्धा-सचोट श्रद्धा बनने के बाद श्रद्धा के विषय में तो साधु निश्चिंत हो चुका है । ज्ञान–समझ भी वैसी पक्की बना ली है । अब तदनुरूप आचरण ही करना है । अतः चारित्राचार की शुद्ध आचरणा छटे गुणस्थान से साधु बनकर शुरु करता है । और आगे बढता है । यहाँ से साधु के विकास की कक्षा शुरु होती है।
गृहस्थ एवं साधु की तुलनात्मक तालिका
घर-गृहस्थीवाले गृहस्थ के जीवन का जो स्वरूप होता है ठीक उससे विपरीत प्रकार का साधु जीवन होता है। गृहस्थ के आचरण से सर्वथा विलक्षण प्रकार के आचार-विचार साधु जीवन के होते हैं। तुलनात्मक दृष्टि से देखने पर दोनों में अन्तर बहुत बड़ा है । इस तुलनात्मक तालिका को देखने से दोनों के बीच का अन्तर व भेद स्पष्ट ख्याल में आएगा
गृहस्थ जीवन १) गृहस्थी-घरबारी (आगारी)
साधु जीवन १) गृहस्थाश्रम का त्यागी, गृहत्यागी
__ अणगारी २) स्त्री-पत्नी का सर्वथा त्यागी। .३) स्त्री का स्पर्श-मात्र भी न करना। ४) धन-संपत्ति का स्पर्श-मात्र भी वर्ण्य
२) स्त्री-पत्नी का रागी ३) स्त्री सुख का रागी ४) धन-संपत्ति के बिना न चलना।
५) मिल्कतादि का मालिक, व्यवस्थापक। ५) त्यागी साधु-मिल्कत का
स्वामी-हक न हो। ६) हिंसादि की प्रवृत्ति के द्वार खुल्ले हैं। | ६) सूक्ष्म हिंसादि के द्वार भी बन्द रखे हैं। ७) आजीवन आरंभ-समारंभी। ७) आयुष्य भर आरंभ-समारंभ का
त्यागी। ८) छःजीवनिकाय की रोज हिंसा। ८) षड्जीवनिकाय की हिंसा का सर्वथा
त्यागी।
७१४
आध्यात्मिक विकास यात्रा