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महामन्त्र का उपयोग करना एक दुरुपयोग सिद्ध हो जाएगा। जिस नवकार की सही सार्थक आराधना से सर्वश्रेष्ठ सर्वोत्तम फलरूप कर्मक्षय, पाप-नाश-एवं मोक्षप्राप्ति की उपलब्धि हो सकती है, वह प्राप्त न कर के उससे उतरती कक्षा के फलों की प्राप्ति करना और वह भी महान नवकार जैसे महामन्त्र से करना यह कहाँ तक उचित है? सही है? अतः सही समझकर आत्मा को सही भावों की तरफ मोडनी चाहिए। सच्ची साधना सच्चे अर्थ में ही करने का लक्ष्य बनाना चाहिए, उसी में हित है। . सिद्धि के अनुरूप साधु धर्म
साधु धर्म के आचार-विचार, साधु का तप-त्याग, व्रत-महाव्रत, सारी आचार संहितादि जो भी, जैसा भी और जितना भी साधु धर्म है वह सारा सिद्धि के अनुरूप है। अर्थात् सिद्धत्व प्राप्त कराने के अनुरूप है । लक्ष्य यही है कि मोक्ष में जो है, जैसा है, उसे पाने के लिए पुरुषार्थ यहाँ से ही प्रारंभ किया जा सकता है। अन्यथा मोक्ष में जाकर कर्मक्षयादि नहीं किया जाता है। जो कुछ करना है, पाना है वह सब यहाँ पर ही पाना है
और बाद में ही मोक्षमें जाना है । साधु मोक्ष के बहुत समीप है । संसार के समीप नहीं है। संसार से तो सर्वथा विरक्त-विमुख हो ही चुका है और मोक्ष के सन्मुख बन चुका है। तभी वह साधुत्व पाया है । अतः साधु की समस्त साधना मोक्ष के अनुरूप-अनुकूल है।
साधु के जीवन में, रहन-सहन, आचार-विचार तथा खान-पानादि सब विषयों में इतना प्रतिबन्ध, त्यागादि क्यों लाया गया है ? इसका उत्तर एक ही है कि साधु का पुनः संसार में पतन न हो जाय परन्तु संसार से बचे, पापकर्म बंध से बचे और मुक्ति मोक्ष की तरफ सदा उन्नत रहे । मोक्ष प्राप्ति की एक ही दिशा में अग्रसर रहे । उन्नत-सन्मुख रहे यही सर्वथा हितावह एवं श्रेयस्कर है, कल्याणकारक है।
संसार से छूटकर जो साधु बना है उसके लिए महाव्रत आदि की व्यवस्था करके समस्त पापों का संबंध ही छुडा दिया है । पापों की प्रवृत्ति ही सर्वथा बंद कर दी है । अतः कोई पाप साधु को करना ही नहीं है । और दूसरी तरफ कर्म क्षय-निर्जरा के लिए अद्भुत तपश्चर्या आदि की धर्माराधना जोड दी गई है । इससे साधु का धर्म संवर एवं निर्जरा प्रधान ही बना दिया गया है । इसीसे मोक्ष की प्राप्ति हो सकेगी। अन्यथा संभव नहीं हो पाएगा। इसलिए मोक्ष में जो जो भी प्राप्त करना है, मोक्ष के लिए जो जो भी प्राप्त करना है वह सब साधक को यहाँ पर प्राप्त करना है । अतः साधु को वैसा मोक्ष के अनुरूप साधक जीवन बनाना है। इसी अर्थ में साधु की व्याख्या भी सही बैठती है कि- "सिद्धि मार्ग"
साधना का साधक - आदर्श साधुजीवन
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