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... मैं भी कभी संसार का यह सारा परिग्रह छोडूंगा, और कभी तो संयम ग्रहण करूँगा? कभी मैं भी संथारा करूँगा? इस प्रकार श्रावक अपने मन में मानसिक भावना बनाता है और बढाता है । “संयम कबही मिले ससनेही प्यारा रे".. अपने प्यारे स्नेही को कहता हुआ श्रावक कहता है कि मुझे संयम चारित्र कब मिले.. मैं चारित्र कब ग्रहण करूँ? ऐसे ऊँचे मनोरथ श्रावक को सदा ही रहने चाहिए।
संयम-दीक्षा का अनुरागी ही सच्चा श्रावक
जैसे एक विद्यार्थी जिसके दिल में सतत आगे बढ़ने की ही इच्छा रहती है । फेल होकर बैठे रहने की कुंठित धारणा नहीं रहती है । पाँचवी क्लासवाला सतत छट्ठी कक्षा में जाने की तीव्र इच्छा रखता है । वही होशियार उत्साही विद्यार्थी कहलाता है । ठीक उसी तरह मोक्षमार्ग पर आरूढ साधकों में श्रावक पाँचवे गुणस्थान (कक्षा) का और साधु छठे प्रमत्त गुणस्थान पर है। सिर्फ एक ही गुणस्थान(कक्षा) का अन्तर है । यह कोई बडा अन्तर नहीं है। वैसे दोनों एक ही स्कूल के दो कक्षा के विद्यार्थियों की तरह है। एक ही मोक्षमार्गरूपी गणस्थानों की स्कूल के पाँचवे और छटे गुणस्थानवर्ती साधक हैं। दोनों ही अपने अपने गुणस्थान पर अपने अपने प्रमाण में साधना करनेवाले साधक हैं। मात्र. साधना के प्रमाण में अन्तर जरूर है ।
श्रावक के आगे की कक्षा साधु की है। साधु श्रावक से एक क्लास (गुणस्थान) आगे है । मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढनेवाले साधकों में साधु श्रावक से थोडा आगे बढ़ चुका है। अतः श्रावक भी आगे बढ़ने की स्पर्धा में सतत साधु धर्म की प्राप्ति की आकांक्षा रखता है । मन में भावना तो उत्तम श्रमणधर्म की नित्य बढती हुई हो और काया से संसार के व्यवहार में.. श्रावक धर्म की मर्यादा पालता हो ऐसा साधक श्रावक ही आगे बढ़ सकता है। अपने संसार में ज्यादा आसक्त न रहकर श्रावक सदा साधु धर्म स्वीकारने-पालने के ऊँचे मनोरथ रखे तो ही आगे विकास हो सकेगा। दूसरी तरफ साधु धर्म की तीव्र इच्छा रखने से फायदा यह है कि.. श्रावक वापिस नीचे नहीं गिरता है। चढेगा तो ऊपर ही चढेगा परन्तु नीचे नहीं गिरेगा। सभी गुणस्थान मनोगत भाव की परिणति की प्राधान्यतावाले हैं। और मोहनीय कर्म के तीव्र उदय के कारण मन सदा ही चंचल-चपल ज्यादा रहता है। ऐसी चंचलता-चपलता के समय भटकते भटकते मन मोहनीय कर्म के, राग-द्वेष के विषय-वासना के, कषाय के, सेंकडों विषयों में ही ज्यादा भटकता है । इसके कारण यह समस्या है और कोई कारण नहीं है। ऐसे भटकने के समय
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आध्यात्मिक विकास यात्रा