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में गई है । अतः यह सिद्ध होता है कि..अनन्त आत्माओं ने चारित्र ग्रहण किया है । चारित्र ग्रहण करनेवालों की संख्या मोक्ष में जानेवाले जीवों की संख्या भी काफी बडी है । क्योंकि चारित्र ग्रहण करनेवाले सभी जीव कहाँ मोक्ष में चले जाते हैं? सभी नहीं जाते हैं। कई जीव यहीं देव-मनुष्यादि गति में जाते हैं। अतः धम-वह्नि की तरह ही व्याप्ति संबंध से यहाँ भी स्पष्ट सत्य कहा जा सकता है कि..जो जो मोक्ष में गया वह अवश्य चारित्रवंत ही था। परन्तु जो जो चारित्रवंत बने वे सभी मोक्ष में नहीं भी गए हैं। मोक्ष में भी गए हैं
और मोक्ष सिवाय की अन्य देव-मनुष्यादि गतियों में भी गए हैं । अतः चारित्र लिया कि सबका मोक्ष हो ही गया, या हो ही जाएगा ऐसा कोई नियम नहीं है । जीवविशेष द्वारा चारित्र धर्म की पालना पर आधार है । लेकिन जो भी मोक्ष में गए हैं वे अवश्य ही चारित्र लेकर मोक्ष में गए हैं। बिना चारित्र धर्म के भतकाल के अनन्त वर्षों में भी कोई भी मोक्ष में नहीं गया है। सभी चारित्र धर्म पालकर ही मोक्ष में गए हैं। इसीलिए “चारित्र विण नहीं मुक्ति” यह पंक्ति सर्वथा सार्थक है। मरूदेवी माता की मुक्ति
' अपवाद रूप में जो दृष्टान्त है वह मरुदेवी माता का है । माता मरुदेवी का मोक्षगमन एक अद्भूत-अनोखी आश्चर्यकारी घटना है । हाथी पर बैठकर मरुदेवी माता भरतजी के साथ आदीश्वर भगवान के दर्शनार्थ जब जा रही थी उस समय अपने पुत्र आदीश्वर भगवान को जो केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उस कैवल्य प्राप्ति का दैवी महोत्सव था। समवसरणादि की अनोखी रचना हुई थी.. देवता आए थे । देवदुंदुभियाँ बज रही थी। अष्ट प्रातिहार्यों की रचना हुई थी। इत्यादि प्रकार की अद्भूत अनोखी ठकुराई को देखने के लिए माताजी की आँखें तरस रही थी। पुत्र ममत्व, मोह जो वर्षों से था वह उत्कृष्ट भावनाओं के चिन्तन की धारा में चढने से पिघलने लगा। भावनाओं के चिन्तन से सहज रूप से मरुदेवा माता की आत्मा ध्यान की धारा में चढ गई। और ध्यान में भी उच्च कक्षा के शुक्लध्यान की कक्षा में पहुंच गई और देखते ही देखते चारों घनघाती कर्मों के आवरण टूटते गए और अन्तर्मुहूर्त काल में ही केवलज्ञान प्राप्त हो गया।
केवलज्ञान की प्राप्ति होते ही जीव सर्वज्ञ सर्वदर्शी-वीतरागी बन जाता है । ४ घाती कर्मों के क्षय से यह अवस्था प्राप्त होती है। परन्तु शेष ४ अघाती कर्मों में अन्तिम जो आयुष्य कर्म सत्ता में पड़ा था। जिसका कार्य सिर्फ जीने के लिए निर्धारित वर्षों का समय
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___. आध्यात्मिक विकास यात्रा