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अध्याय
अध्याय
साधना का साधक आदर्श साधुजीवन
...........६९६
चारित्र विण नहीं मुक्ति रे............
..........६ मोक्षगामी - चारित्रप्रिय हो................
.........६९३ आनन्द - कामदेवादि श्रावक.....
.....६९५ तीर्थंकर भी अनिवार्य रुप से दीक्षा लेते हैं..... दीक्षा के साथ ही मनःपर्यवज्ञान...................................७०० दीक्षा का महत्व.................................................७०१ संयम - दीक्षा का अनुरागी ही सच्चा श्रावक...... ........७०४ श्रावक के लिए अप्रमत्त भावरुप -छट्ठा गुणस्थानक................७०५ आध्यात्मिक गुणों का विकास ही सच्ची साधुता है...
कास हा सच्चा साधुता ह.................७०६ मोक्ष प्राप्ति के अनुरुप धर्म..........
............७०९ पणासणो के लिए धर्म - नमो.....
........ .७११ मोक्षसाधक महामन्त्र नवकार......................... सिद्धि के अनुरुप साधु धर्म.......................................७१३ गृहस्थ एवं साधु की तुलनात्मक तालिका.
..........७१४ श्रावक भी साधु तुल्य बन सकता है.................. .........७१७ गुरु की गरिमा...................................... ..........७१९ ३६ गुणधारक गुरु की श्रेष्ठता......................
७२२ ब्रह्मचर्य के १० समाधिस्थान............... ..........७२४ अनेक रीत से गुणों का वर्गीकरण...................... .........७२८ आचार्य के अनेक प्रकार.........................................७३० गुणाश्रित स्वरुप.
.........७३२ गुणों की व्यवस्था का शाश्वत स्वरुप................... ......... ७३४ प्रमाद का स्वरुप................
........७४० भ. महावीर की अप्रमत्तभाव की साधना................. ......... .७५० मिथ्यात्वादि बंध हेतुओं से आत्मगुणों का नुकशान................ .७५५ अप्रमत्तभाव से निर्जरा............
......७६०. प्रमाद से पाप - कर्म की प्रवृत्ति............
..........७६२ मुदीर्थ जीवन्त प्रकृति
... ... .. .७६'प्रमत्त - अप्रमत्त माध........ .
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . ७६७ साधक काप्रा , बनना ही श्रेयस्कर है.
. . . .७७१
Lumme
rnamrum.inmamimini
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