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भावश्रावक के १७ लक्षण
कयवयकम्मो तह सीलवं च गुणवं च उज्जुववहारी।
गुरुसुस्सूसो पवयणकुसलो, खलु सावगो भावे । धर्मरत्न प्रकरण ग्रन्थ में- १) कृतव्रतकर्मा, २) शीलवंत, ३) गुणवंत, ४) ऋजुव्यवहारी, ५) गुरुसुश्रूषक, ६) प्रवचन कुशल, इत्यादिभाव श्रावक के मुख्य लक्षण
है
१) कृतव्रतकर्मा-धर्म श्रवण, जानना,व्रत ग्रहण करनेवाला, और पालनेवाला इन चारों
प्रकारोंवाला भाव श्रावक दृढसंकल्प से व्रत पालनेवाला है। २) शीलवंत- शील-सदाचार उत्तम रिती से पालनेवाला, ६ प्रकार के अवान्तर
भेदवाला भाव श्रावक कहलाता है। : ३) गुणवंत-स्वाध्याय, विनयादि गुणोंवाला अवान्तर ५ प्रकार के गुणों का धारक
भावश्रावक कहलाता है। ४) गुरुसुश्रूषक-उपकारी गुरुदेवों की सेवाभक्ति वैयावच्च उत्तम तरीके से करनेवाला
भावश्रावक है। ५) प्रवचन कुशल- सूत्र-अर्थ-उत्सर्ग-अपवाद-भाव-व्यवहारादि ६ तरीकों से
प्रवचन श्रवण में कुशल को भाव श्रावक कहा है। धर्मरत्नप्रकरण ग्रन्थ में भावश्रावक के संक्षिप्त में १७ लक्षण इस प्रकार दर्शाए हैं
१. स्त्री का शिकार न बनकर आत्म कल्याण में उद्यमी हो । २. जितेन्द्रिय, ३. धनमूर्छा का त्यागी, ४. संसार के प्रति उदासीन । ५. विषय वासना-काम संज्ञा में आसक्त न हो। ६. आरंभ समारंभ का त्यागी । ७. गृहस्थावास को जेल-बंधनरूप मानकर छूटनेवाला, ८. सम्यग्दृष्टि-अपार श्रद्धालु, ९. गतानुगतिकता आदि लोकाचार का त्यागी, १०. जिनागमों का आदर भाव रखकर जिनाज्ञा का पालक, ११. दानादि धर्म में प्रवृत्त, १२. धर्म क्रिया विधिवत् करने में कुशल, १३. राग-द्वेष से सदा बचकर चलनेवाला, १४. दुराग्रह का त्यागी, १५. स्वजनादि संबंधों को क्षणभंगुर-अनित्य माननेवाला, १६. अनासक्तसंसार के विषय-भोगों आदि सब में आसक्ति न रखता हुआ विरक्ति के भाव से जीवन जीनेवाला, १७. गृहस्थाश्रम जीवन छोडने की उत्कंठा से त्याग करने की सदा तीव्र भावना रखनेवाला और श्रमण जीवन स्वीकारने की तीव्र इच्छावाला । उपरोक्त गुणों तथा लक्षणों · को जानकर शास्त्र-विहीत आदर्शकोटि का शुद्ध श्रावक बनने का प्रयत्ल करना हितावह
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आध्यात्मिक विकास यात्रा