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चाहिए। ३६) शासन प्रभावना- संघ यात्रा, उद्यापन, अष्टाह्निका महोत्सव, आदि शासन प्रभावना के अनेक कार्य करने चाहिए।
उपरोक्त ३६ कर्तव्य श्रावक जीवन योग्य बताए हैं। ऐसे कर्तव्यों को करनेवाला श्रावक उत्तम जाति का श्रावक कहलाता है। स्व–पर उभय का कल्याण करता है। द्रव्य-भाव की अपेक्षा से श्रावक के भेद में भाव श्रावक का स्वरूप कहते हैं।
प्रकारान्तर से श्रावक के भेद
यो हाभ्युपेतसम्यक्त्वो, यतिभ्यः प्रत्यहं कथाम्।
शृणोति धर्मसम्बद्धामसौ श्रावक उच्यते॥ . (आवश्यकवृत्ति) आवश्यकवृत्ति में कहते हैं कि..जिसने सम्यग्दर्शन अंगीकार किया हो और जो नित्य धर्मकथा-प्रवचन श्रवण करता हो, तथा जिसने सम्यक्त्व के साथ अणुव्रतादि व्रत उच्चरे हो ऐसा प्रतिज्ञाधारी श्रावक कहलाता है । धर्म क्षेत्र में भी द्रव्य की अपेक्षा भावों की प्रधानता है । अतः जैसा धर्म करनेवाला होगा वैसा श्रावक कहलाएगा। द्रव्यश्रावक
और भावश्रावक दोनों भेद होते हैं । तीन भेद शास्त्रों में दर्शाते हुए दर्शन श्रावक, मूलगुण श्रावक और उत्तरगुण श्रावक इस तरह श्रावक के तीन भेद भी बताए गए हैं । श्री ठाणांग सूत्र आगम शास्त्र में___“चउव्विहा समणोवासगा पण्णत्ता, तं जहा–अम्मापिइसमाणे, भाइसमाणे, मित्तसमाणे, सवत्तिसमाणे अहवा चउबिहा समणोवासगा पण्णत्ता तं जहा–आयंससमाणे, पडागसमाणे, खाणुसमाणे, खरंट समाणे।" . श्री ठाणांग सूत्र के चौथे अध्ययन के तीसरे उद्देश्य के ३२१ वे सूत्र में कहते हैं कि- श्रावक ४ जैसे होते हैं- १) माता-पिता समान २) भाई समान, ३) मित्र समान, ४) शोक्य समान होते हैं।
दूसरे तरीके से भी श्रावक ४ प्रकार के होते हैं- १) आदर्श = दर्पण समान, २) ध्वजा समान, ३) स्थाणुसमान, और ४) खरकंटक समान। ये सभी अपने अपने लक्षणानुसार माने जाते हैं । व्यवहार नय उपरोक्त आठों प्रकारों को भावश्रावक की गणना में गिनता है । निश्चय नय की दृष्टि से शोक्य तथा खरकंटक समान इन दो भेदों को द्रव्य
और शेष ६ भेदों को भाव श्रावक की कक्षा में मानता है । द्रव्यस्वरूप और भावस्वरूप श्रावक के दोनों भेदों में उनका आत्मस्वरूप कारणभूत है।
देश विरतिधर श्रावक जीवन