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का त्याग किये बिना आत्मा-परमात्मा-मोक्षादि तत्त्व कैसे पल्ले पडेंगे? कैसे समझ में आ सकेंगे? अतः असंभवसा लगता है।
समुद्र तैरना तैराकी के लिए आसान है । पर्वतारोही के लिए हिमालय की चोटीरूप एवरेस्ट शिखर पर चढना आसान है । लेकिन मिथ्यात्व के धरातल से सम्यक्त्वके शिखर पर चढते हुए गुणारोहण करना अनेकगुना असंभव जैसा लगता है। लेकिन इसे असंभव मानकर ही बैठे रहे तो कभी भी आगे नहीं बढ सकेंगे। आखिर आज नहीं तो कल विकास की दिशा में आगे बढ़ना तो पडेगा ही। कैसा विकास साधे?- संसार के मंच पर लाखों-करोडों लोग है । सभी जीव अपने-अपने क्षेत्र में अभीष्ट विकास के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। कर्मवश ऐसे जीव जो आध्यात्मिक लक्ष ही नहीं रखते वे बेचारे संसार में ही अपना सांसारिक विकास साधने में प्रयत्नशील रहेंगे। कोई अपने परिवार का विकास साधते हैं, कोई आर्थिक विकास में संतोष मानते हैं। अपनी श्रीमन्ताई का ही उन्हें नाज है। कोई शिक्षा के क्षेत्र में विकास साधते हुए कई उपाधियाँ हासिल करते हुए आगे बढ़ते हैं। कोई उद्योगों का विकास करके उसमें ही अपना अहं संतोषते हैं। कुछ लोग राजकारण के क्षेत्र में सत्ता की बढोतरी में ही अपना विकास मानते हैं। कोई बढती हई मान-पद-प्रतिष्ठा में अपने आप को बड़ा मानते हैं। क्या सचमुच यह विकास है ? जी नहीं। - इस प्रकार के विकासों में हमारी आत्मा जहाँ थी वहीं है, और जैसी थी वैसी ही है। आत्मा की निष्कषायता, राग-द्वेष का शमन, चिन्तन का स्तर आदि कुछ भी नहीं बढ़ा। आत्मा में किसी भी गुणों का विकास नहीं हुआ। न तो क्षमा-समता बढी, और न ही नम्रता-सरलता बढी । तो क्या बिना इनके राज्य की बडी सत्ता के पद पर वह सुशोभित होगा? कल राष्ट्रपति के या प्रधानमंत्री के ऊँचे पद पर पहुँच कर भी व्यक्ति भ्रष्टाचार-दुराचार-व्यभिचार आदिदुर्गुणों से भ्रष्ट बनने पर अपनी इज्जत,राष्ट्र की इज्जत एवं पद की गरिमा को बडी गहरी चोट पहुँचाता है । विश्व के मानचित्र में वह अपना एवं अपने देश का स्थान नीचा दिखाता है। .... ___आप किसी भी स्थान या पद पर पहुंचिये, आप जगत में विकास के किसी भी पद पर पहुंचिए, याद रखिए, प्रत्येक पद पर क्षमा, समता, सरलता, नम्रता, अकिंचनता, सत्य, निष्ठा, श्रद्धा आदि सेकडों गुणों की सर्वप्रथम आवश्यकता रहती ही है। बिना इन गुणों
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आध्यात्मिक विकास यात्रा