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________________ अध्याय८ सम्यक्त्व गुणस्थान पर आरोहण अनन्तगुने सम्यक्त्वी, समदर्शी, समत्वी, समता के सागर, सर्वदर्शी, सर्वगुणी, सर्वज्ञ, सर्वश्रेष्ठ सर्वोत्तम परमात्मा चरमतीर्थपती प्रभु महावीरस्वामी के चरणों में अनन्त वन्दना पूर्वक.... गुणारोहण___हम पर्वतारोहियों को देख चुके हैं। किस तरह हिमालयादि पर्वत चढते हैं । पर्वतों पर चढना कितना कठिन होता है? जान की बाजी लगाकर लोग हिमालय जैसे विशालकाय पर्वत पर आरोहण करते हैं। उसमें भी जब एवरेस्ट के शिखर पर आरोहण करना हो तो समझिए मौत के सामने लड़ते हुए आगे बढना हैं । जान हथेली पर लेकर एकएक कदम आगे बढना पडता है। प्रतिपल गिरने का भय रहता है । फिर भी हिम्मतवान व्यक्ति चढ जाता है । कइयों ने तो दम तोड भी दिया। कई पार उतर भी गए। इसी तरह गुणों का हिमालय पर्वत हो और उस पर चढना हो तो कठिन लगता है या आसान? पर्वतारोहण करना पर्वतारोहियों के लिए आसान बन सकता है परन्तु गुणरूपी पर्वतों पर चढना अर्थात् गुणारोहण करना पर्वतारोहण से भी अनेक गुना कठिन है। . ___जिस मिथ्यात्व के बारे में हम विचार कर आए हैं वह मिथ्यात्व पर्वत के बिल्कुल सर्वथा नीचे के तलभाग पर है । तलभाग सर्वथा निम्नस्तर पर है। इसलिए मिथ्यात्वी की विचारधारा अत्यन्त निम्न कक्षा की होती है। जगत के जितने उच्च कक्षा के उच्चतम श्रेष्ठतम कक्षा के ऊँचे जीवादि तत्त्व, परमात्मादि तत्त्वों के बारे में संसार का सबसे निम्नस्तर पर रहनेवाला मिथ्यात्वी जीव क्या सोच पाएगा? क्या विचार कर पाएगा? आत्मादि पदार्थ का स्वरूप मिथ्यात्वी के पल्ले पडे जैसा ही नहीं है । मिथ्यात्वी की दृष्टि-मति सर्वथा विपरीत होने के कारण उसमें उस प्रकार की योग्यता पात्रता ही नहीं है। अतः वह क्या कर सकेगा? इस तरफ आत्मादि तत्त्वभूत पदार्थ बहुत ही गूढ हैं। गहन हैं। गहरे पानी में गोताखोरी किये बिना जैसे हीरे-मोती-रत्नादि हाथ लगनेवाले नहीं है ठीक वैसे ही तत्त्वरुचि का गुण जगाकर दुराग्रह-कदाग्रह एवं पूर्वग्रह की दुर्बुद्धि सम्यक्त्व गुणस्थान पर आरोहण ४३५
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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