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अध्याय ८ का प्रवेश द्वार
सम्यक्त्व गुणस्थान पर आरोहण
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कैसा विकास साधे ? . ४३६
"निर्धारित लक्ष्य की दिशामें विकास.. • विकास में बाधक - मिथ्यात्व...
मुक्ति एवं सम्यक्त्व का अधिकारी भवी जीव..
सम्क्त्व और भव्यत्व.....
मोक्ष के लिए अयोग्य मिथ्यात्वी.. मिथ्यात्व, पाप और संसार परिभ्रमण. मिथ्यात्व की त्रैकालिक अधिकता.. राग-द्वेष की निबिड ग्रन्थि .... चरमावर्त में प्रवेश..
• मिथ्यात्व की मन्दता - तीव्रता.. अपुनर्बंधक जीव की विशेषता. मार्गानुसारी जीवन के ३५ गुण.. लोकोत्तर धर्म की आधारशिला.. मार्गाभिमुख मार्गपतित-मार्गानुसारी भाव.
धर्म का बाल्य एवं यौवन काल.. योगबीज..
श्रेष्ठ सम्यक्त्व की प्राप्ति के ५ कारण.
धर्मसनन्मुखीकरण काल....
यथाप्रवत्तिकरण का प्रयोजन एवं प्रक्रिया.
करण की उपयोगिता....
ग्रन्थि का स्वरूपं ..
तीन करणों की आवश्यकता. सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के विकास का क्रम. ग दर्शन की प्राप्ति की प्रक्रिया.
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