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________________ १२) रात्रि धर्मकथा-अपने परिवार के सभी सदस्यों को एकत्रित करके धर्मकथा करनी चाहिए। गुरु भगवंतों से सुनी हुई धर्म की बातें सब को समझानी चाहिए। धर्मग्रन्थ-पुस्तकादि का वांचन करते हुए भी सबको समझाना-सुनाना चाहिए। स्वयं को भी नूतन ज्ञान उपार्जन करना चाहिए। माता-पिता वडिलजन-बाल-ग्लान-दुःखी-पीडित रोगी की सेवा वैयावच्चादि करके १ प्रहर = ३ घंटे (सूर्यास्त बाद) रात्री (रात्रीका प्रथम भाग बीतने पर) में सोना चाहिए। सोने के पहले स्थुलिभद्रजी, सुदर्शन शेठ, जंबुकुमार आदि महापुरुषों का स्मरण करना चाहिए। २४ जिन-गुरु आदि महापुरुषों का स्मरण पूर्वक नमस्कार महामंत्र का स्मरण कर सभी जीवों को खमाकर.. अपने पापों-अपराधों की क्षमायाचना करके निद्राधीन होना चाहिए । दूसरे + तीसरे भाग की २ प्रहर रात्रि शयन-निद्रादि करके चौथे प्रहर की अन्तिम रात्रि में जगकर पुनः धर्माराधना से नए दिन की शुभ शुरुआत करनी चाहिए। ऐसी सुन्दर श्रावक जीवन की दिनचर्या होनी चाहिए । इसमें धर्माराधना, परिवार हित, आजीविका व्यापारादि सब कुछ गृहस्थ जीवन योग्य सारा जीवन व्यवहार समाविष्ट हो जाता है। इस तरह का श्रावक जीवन कितना सुन्दर बनता है। निश्चिंत बनता है। शास्त्रकार भगवंत ने “मन्हजिणाणं” की सज्झाय में ३६ कर्तव्यों का समावेश करते हुए सुन्दर सज्झाय बनाई है वह यहाँ अवतरित करता हूँ। जिसके स्वाध्याय–चिन्तन-मनन से विशेष लाभ होता है मन्ह जिणाणमाणं, मिच्छं परिहरह धरह सम्मत्तं । छविह आवस्सयंमि, उज्जुओ होइ पइ दिवसं ॥१॥ पव्वेसु पोसहवयं, दाणं सील तवो अभावो अ। सज्झाय नमुक्कारो, परोवयारो अजयणा अ ॥२॥ जिणपूआ जिणथुणणं, गुरुथुअ साहम्मिआण वच्छल्लं । ववहारस्स य सुद्धि रहजत्ता तित्थजत्ता य उवसम विवेग संवर, भासं समिई छजीव करुणाय । धम्मिअजणसंसग्गो, करणदमो, चरणपरिणामो संघोवरि बहुमाणो, पुत्थयलिहणं पभावणा तित्थे। सड्डाण किच्चमेयं, निच्चं सुगुरुवएसेणं ॥३॥ ॥४ ॥ देश विरतिघर श्रावक जीवन ६८५
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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