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________________ ७) जिनपूजा = परिमित जल से देहशुद्धि आदि करके स्वद्रव्य से पूजा के उपकरणादि लेकर..जिनमंदिर जाकर अद्भूत भक्तिभाव पूर्वक विधिवत् अष्टप्रकारी पूजा करनी चाहिए । भाव पूजा में स्तुति-स्तवनादि प्रभु गुणगान करके जाप-ध्यानादि करके विशेष उपासना करनी चाहिए। ८) जिनपूजा के पश्चात् घर आकर अभक्ष अनन्तकायादि का त्याग करके.. गुरु भगवंतों को गोचरी-भिक्षा का सुपात्र दान करके बाद में स्वयं भोजन करें । एकाशनादि व्रत हो तो अति उत्तम । उस रूप से आहारादि करके.. ९) अर्थचिन्ता- अब श्रावक अपनी आजीविका हेतु अर्थचिन्ता करें ।व्यापार करने जाय । पुत्र-पत्नी-परिवारादि की आजीविका हेतु व्यापार करें । हो सके वहाँ तक सावद्य त्यागरूप निरवद्य निर्दोष निष्पाप व्यापार करना चाहिए । हिंसादि के त्याग का ही व्यापार श्रेष्ठ है । फेक्ट्री-कारखाने, इंडस्ट्री आदि चलाकर अति महा हिंसा का पाप सिर पर नहीं लेना चाहिए । न्याय नीतिमत्ता का ध्यान रखते हुए न्यायसंपन्न विभवादि का ध्यान रखते हुए महाजन योग्य इज्जत का विचार करके व्यापार करें। आयव्यय की व्यवस्था सुन्दर सुचारु रूप से करें। १०) शाम को सूर्यास्त पूर्व अपना व्यापार-काम-काज समेटकर अति लोभ न रखते हुए संतोष पूर्वक.. शाम को घर आकर यदि शाम का भोजन करना हो तो सूर्यास्त से पूर्व करें। (एकासणे आदि की तपश्चर्या हो तो सवाल नहीं है । और बिआसणादि हो तो सायंकाल को हलका सुपाच्य वालु करें । सूर्यास्त होते ही चौविहार (चारों आहार के त्याग) का पच्चक्खाण करें। न हो सके तो तिविहार का पच्चक्खाण रखकर पानी की अनिवार्यता लगे तो अपवाद सेवन कर अन्य आहारादि से बचे) श्रावक को भी रात्री भोजनादि का सर्वथा त्याग होता ही है। . ११) संध्याकालीन जिनमंदिर में तीसरी बार दर्शन-पूजा, आरती-मंगलदीपकादि करना । जिनमूर्ति समक्ष चैत्यवंदन स्तुति स्तवना-जाप-ध्यानादि करना चाहिए । त्रिकाल दर्शन तथा त्रिकालपूजादि करने का विधान है। भक्ति भावनादि के पश्चात् गुरु भगवंत के पास उपाश्रय में जाकर... सायंकालीन प्रतिक्रमण करना चाहिए । षडावश्यक की क्रियादि करके गुरुसुश्रूषा सेवा भक्ति–वैयावच्च आदि करके, स्वाध्याय-जिनागम-शास्त्र समझना पूछनादि करके घर पर आना चाहिए। ६८४ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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