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१) सर्वप्रथम सूर्योदय से ४ घडी (९६ मिनिट, अर्थात् १ घंटा ३६ मिनिट) पहले उठना चाहिए। (आयुर्वेद शास्त्र कहते हैं कि सूर्योदय से पहले उठनेवाले का आयुष्य-और बल-बुद्धि बढती है। तथा सूर्योदय के बाद देरी से उठनेवालों का आयुष्य-बल-बुद्धि घटती है । अतः ब्रह्ममुहूर्त में ४ घडी सूर्योदय पूर्व उठकर नवकार महामंत्र का स्मरण करना चाहिए। __२) द्रव्य-क्षेत्रादि से स्व आत्मा का विचार करना चाहिए । मैं कोन हूँ ? मेरे भगवान गुरु कौन हैं ? कैसे हैं? क्षेत्र से मैं कहाँ हूँ ? गाँव-शहरादि-गली–घरादि का स्मरण किया जाता है । काल से । दिन में-रात में किस समय में हूँ ? आज तिथी-वार आदि का समय । (काल नैमित्तिक धर्माराधनाओं का स्मरण होता है) भाव से .. मैं किस कुल-खानदानी-वंश-जाति का हूँ ? किस और कैसे धर्म का हूँ ? मुझे कौन कौन से व्रत-नियमादि पालने हैं ? इत्यादि का स्मरण करना चाहिए। इस तरह धर्म चिन्ता करनी चाहिए।
३) धर्म के नियमों में प्रथम एक सामयिक करनी चाहिए १) आत्मा है, २) आत्मा नित्य है, ३) कर्म है, ४) कर्म का कर्ता-भोक्ता मैं हूँ, ५) मोक्षप्राप्ती है और ६) मोक्ष प्राप्ती का उपाय रूप धर्म है । इस तरह अपनी आत्मा के साथ भावचिन्तन करते हुए स्वाध्याय करना । प्रभु स्मरण, महामन्त्र जाप आदि तथा स्वाध्याय द्वारा सामायिक करना ।
४) प्रातःकालीन राइ प्रतिक्रमण करना विहरमान = विचरते हुए २० तीर्थंकर भगवंतों की स्तुति-चैत्यवंदन आदि करना। सिद्धक्षेत्र शत्रुजय सम्मेतशिखरजी आदि तीर्थों के चैत्यवंदन स्तवनादि करना । महान पुरुषों, महासतियों आदि का स्मरण करना। फिर मैत्री आदि भावना भानी चाहिए। फिर नवकारशी आदि करने योग्य पच्चक्खाण धारण करने चाहिए।
५) प्रातः प्रभु दर्शन - जिन मंदिर जाकर .. प्रभु दर्शन, वासक्षेप पूजादि करके भावपूर्वक प्रतिमा समक्ष स्तुति, स्तवना, गुणस्तव आदि करके.. पच्चक्खाण लेना। नवकारशी आदि करके...प्रातःमाता-पिता वडिलजन के चरणस्पर्श नमस्कारादि करना।
६) गुरुवंदन - उपाश्रय में गुरु भगवंत समक्ष आकर विनम्रभाव से गुरुवंदन करना । (पच्चक्खाणादि ग्रहण करना) जिनवाणी श्रवणरूप प्रवचन सुनना चाहिए। प्रवचन सुनना श्रावक का नित्य कर्तव्य है।
देश विरतिधर श्रावक जीवन
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