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छट्ठे व्रत के पालन- अपालन से हिताहित
१) दिशा - विदिशाओं का त्याग करने का हेतु संतोष की वृद्धि के लिए है । २) अविरति के बिना भी पाप त्यागादि का लाभ मिलता है । व्रत के अभाव से तीव्र असंतोष, अशान्ति, क्लेश- कषाय- कलह प्राप्त होते हैं । सब पापों का मूल ही लोभ है । अतः छट्ठे व्रत के सेवन से लोभ का नियंत्रण होता है । तथा संतोष सुख की प्राप्ति होती है । इससे यह छट्ठा व्रत पहले और पाँचवें व्रत के लिए ज्यादा हितकारक है ।
सातवें व्रत के पालन-अपालन से गुण-दोष -
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कर्म से - जिससे अति तीव्र कर्म बंध हो, लोकनिंदा का कारण हो, वैसे अयोग्य लेन-देन - अभक्ष पदार्थों का त्याग करने से विशेष लाभ होता है । तथा अयोग्य व्यवसायों का भी त्याग करना, तथा अल्प आरंभवाले पदार्थों का प्रमाण मर्यादित करना अच्छा है। अभक्ष का भक्षण अनेक रोगों - हिंसादि में कारण बनने से वर्ज्य है । १) रात्री भोजन, २) परस्त्रीगमन, ३) संधान अचार, और ४) अनंतकायादि का भक्षण ये ४ नरकगति के मुख्य कारण है। सचित्तादि में भी जीवहिंसा होती हैं जिसके कारण परलोक भी बिगडता है । रोग-व्याधि के कारण बनते हैं । सात्विक शुद्ध आहार के अभाव में तामसिक — राजसी वृत्ति बढानेवाले आहार से राग- - द्वेष – दोषादि की प्रवृत्ति बढेगी । इससे बांधे हुए कर्मों के कारण भवान्तर भी बिगडेंगे । कर्म बंध की तीव्रता तथा प्रचुरतादि से बचना इस सातवें का है।
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अनर्थ दंड पालन- अपालन से गुण-दोष
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चारों प्रकार के अनर्थदंड भयंकर अनर्थकारी है। दुर्ध्यान से किसी को इष्ट सिद्धि नहीं है । उल्टे नरकादि के अनिष्ट दुःखों की प्राप्ति होती है। तन्दुल मत्स्य मात्र मन के दुर्ध्यान से ही ७वीं नरक में जाता है। अनर्थकारी = अर्थात् निरर्थक पाप कर्मोंसे बचना लाभप्रद है। जीवन में कई पाप अनिवार्य आवश्यक होते हैं। जबकि कई पाप निरर्थक—अनावश्यक होते हैं। दुर्गति से बचने के लिए जीव यदि दो विभाजन करके निरर्थक पापों से बचना चाहे, संकल्प करे तो ५०% पापों से आज बच सकते है। पाप से बचने से दुर्गति से बच सकते हैं। अतः अनर्थदंड व्रत के पालन से दुर्ध्यान से बच सकते हैं। दुर्ध्यान- दुर्गति का कारण है । अतः दुर्ध्यान से बचनेवाला दुर्गति से बचता है ।
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देश विरतिधर श्रावक जीवन
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