SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सहन करते रहना पडता है । ३. किसी भी तरह से यश-कीर्ति-प्रशंसा कभी प्राप्त ही नहीं होती है । ४. दुर्गंधी शरीर मिलता है । ५. भाषा कटु-कठोर मिलती है । ६. स्वभाव खराब मिलता है । ७. बुद्धिहीन, मूर्ख, मुखरोगी, तुतलाने के रोग, बडबडाने का उन्मादादि रोग होते हैं । मानसिक रोग होते हैं। ८. इस जन्म में भी जीभ काटना, जेल, फाँसी, सजा, आदि अनेक प्रकार की पीडा दुःख दुर्गति प्राप्त होते हैं । अतः ऐसे कनिष्ठ फल न पाने हो तो जीवों को निरंतर मृषावाद-झूठ का त्याग करके सत्यवादि बनना ही लाभप्रद है। चोरी से नुकसान तथा अचौर्यवृत्ति से लाभ संबोध प्रकरण ग्रन्थ के २३-२४ वे श्लोक में स्तेयवृत्ति-चोरी के नाश से जो लाभ बताए हैं उनमें कहा है कि- अचौर्य वृत्तिवाला जीव १) सब के लिए विश्वसनीय, विश्वासपात्र बनता है । २) प्रशंसनीय-प्रशंसा पात्र बनता है । ३) धनादि की वृद्धि होती है। ४) निर्भयता आती है । ५) गति हमेशा अच्छी सद्गति होती है । ६) बिना चोरी से नीतिपूर्वक प्राप्त किया हुआ धन कभी नष्ट नहीं होता है । अपहरण-चोरी नहीं होती। इस व्रत का पालक भावि में राजा-महाराजादि की ऊँची पदवी भी प्राप्त करता है। ठीक इससे विपरीत चोरी करनेवाला-चोरवृत्तिवाला जीव अनेक प्रकार के दुःख पीडा पाता है। जेल–फाँसी-आजीवन कारावासादि सजा प्राप्त करता रहता है। पुत्र-पत्नी परिवार का वियोग सहता है । वधादि का भय रहता है । सदा भयग्रस्त रहता है। राजादि के लिए सदा शंका का पात्र रहता है। निश्चिन्तता सन्दर निद्रादि कभी भी नहीं मिलती है । मृत्यु के बाद परलोक में भी .. नरकगति के भयंकर दुःखों की सजा लम्बे आयुष्य तक भुगतता है। आगे के कई जन्मों तक मच्छीमार, गूंगा-बहरा, आदि बनता है । कई प्रकार के सेंकडों दुःख अनेक जन्मों तक जीव भुगतता रहता है। ब्रह्मवत के लाभ तथा अब्रह्म सेवन के दोष शास्त्रकार महर्षि यहाँ तक शास्त्रों में लिखते हैं कि- १) कोई करोडों सुवर्ण मुद्राओं का दान करें, अथवा सोने का मंदिर भी बना दे उससे भी ज्यादा ब्रह्मचर्य व्रत पालने में लाभ बताया है । २) देवता भी ब्रह्मचारियों को नमस्कार करते हैं। क्योंकि देव-गति-देव जाति में ब्रह्मव्रत पालना अत्यन्त कठिन है । ३) ब्रह्मवत पालने के लाभ के रूप में उत्तम ठकुराइ, ऋद्धि-समृद्धि, स्वर्गादि सुखों की प्राप्ति, निर्विकारी बल, तथा अल्पकाल में मोक्ष प्राप्त हो सकता है । कलह करानेवाले, नारदीवृत्ति से कइयों को परस्पर लडानेवाले नारदजी भी उसी जन्म में मोक्ष में गए उसका एक ही आधार ब्रह्मचर्य व्रत पर है। देश विरतिघर श्रावक जीवन
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy