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अहिंसा व्रतपालन से लाभ, न पालने से दोष
श्री संबोध प्रकरण के ग्रन्थ के श्रावक व्रताधिकार की बारहवीं गाथा में कहा है कि– हिंसा के त्याग पूर्वक अहिंसा का पालन करने से १) निरोगी काया, २) सब को मान्य हो ऐसी आज्ञा का ऐश्वर्य, ३) सुन्दर रूप रंग, ४) निष्कलंक यश-कीर्ति, ५) न्यायोपार्जित धन, ६) निर्विकार यौवन, ७) दीर्घ आयुष्य, ८) उत्तम परिवार की प्राप्ति, ९) विनयवंत पुत्रों की प्राप्ति, १०) उत्तम सुखों की प्राप्ति आदि अनेक प्रकार का उत्तम लाभ होता है । इन सब की अपेक्षा इच्छा प्रायः सभी गृहस्थ रखते हैं । लेकिन अहिंसा पालने के लिए तैयार नहीं है । वे सिर्फ मंदिर में जाकर भगवान के पास माँग लेने में संतोष मान लेते हैं। गुरुओं के पास ऐसे आशीर्वाद प्राप्त करके उपरोक्त फल प्राप्त करना चाहते हैं, परन्तु शुद्ध अहिंसा धर्म का आचरण करने के लिए उद्यमवंत नहीं होते हैं। हिंसा के त्याग । और अहिंसा के पालन से इतने लाभ मिलते हैं।
यदि अहिंसा व्रत का आचरण नहीं करते हैं और हिंसा करते हैं तो - १. पंगुपना, २. बावना शरीर, ३. कुष्टादि रोग ग्रस्तता, ४. रोगी शरीर, ५. भयंकर जीवघातक महारोग, ६. स्वजनादि का वियोग, ७. शोक, ८. अकाल मृत्यु, ९. अल्प आयुष्य, १०. दुःख, ११. दौर्भाग्य, १२. दुर्गति आदि अशुभ फल मिलता है । तिर्यंच नरकगति के जन्म धारण करके जीव को बडी भारी पाप की सजा भुगतनी पडती है । तब महादुःखी होते हैं। . सत्य के सेवन, असत्य के सेवन से लाभ-दोष
इस व्रत में असत्य का त्याग करने पूर्वक सत्य बोलने से- १.लोगों में विश्वसनीयता प्राप्त होती है। लोग विश्वास रखेंगे, २. यश कीर्ति अच्छी मिलती है । ३. दूसरे सत्यवादी का वचन मानते हैं । ४. सत्यवादि के वचन को आशीर्वाद रूप-अमोघ मानते हैं। ५. सत्यवादि को सर्वमन्त्र, सर्व योगों की सिद्धि प्राप्त होती है । ६. धर्मादि पुरुषार्थ सत्य के अधीन हैं। वे फलीत होते हैं । ७. प्रतिष्ठा बढ़ती है। व्यक्ति प्रतिष्ठित बनता है । ८. सत्य से रोग-शोकादि का नाश होता है । ९. मनोबल बढाकर सर्वत्र विजयी बनता है। प्रशंसनीय बनता है । १०. भविष्य में स्वर्गादि सुखों की सुंदर गति की प्राप्ति होती है।
ठीक इससे विपरीत.. यदि सत्य को छोडकर झूठ-असत्य बोलनेवाले मृषावादि के लिए संबोधसितरी प्रकरण ग्रंथ में स्पष्ट कहते हैं कि- १. मृषावादि अप्रियभाषी होता है। इसका बोला हुआ किसीको प्रिय-पसंद नहीं आता है । २. सदा तिरस्कार, अपमान
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आध्यात्मिक विकास यात्रा