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________________ - ध्येय- श्रावक श्रमणोपासक कहलाता है। श्रमण = साधु को कहते हैं। श्रमणपना= साधुपने का उपासक श्रावक मन में सदा साधुत्व प्राप्त हो ऐसी इच्छा रखता है। अतः वह जब तक सर्व विरतिपना न मिले वहाँ तक श्रावक जीवन में भी साधुधर्म की पालना सामायिक–पौषध से बार बार करता है । चारित्र के अभ्यास के लिए यह पौषध है। भरत चक्रवर्ती और सूर्ययशा राजा आदि आदीश्वर भगवान की परम्परा में अनेक पौषध करते थे। आनन्द, कामदेव श्रावक, सुलषा आदि श्राविका भी काफी प्रशंसनीय पौषध करते थे। अतः श्रावक जीवन में साधुत्व के आस्वाद के रूप में यह पौषध व्रत जो आत्मा में पंचाचार धर्म जो ज्ञानदर्शनादि आत्मगुणरूप है उनकी पुष्टि वृद्धि करता है । कर्म . निर्जराकारक है अतः इस ध्येय से पौषध अवश्य करना चाहिए। बारहवाँ- अतिथि संविभाग व्रत-(चतुर्थ शिक्षाव्रत) आहार-वस्त्र-पात्रादेः प्रदानमतिथेर्मुदा। उदीरिते तदतिथि-संविभाग व्रतं जिनः ।। दानं चतुर्विधाहार-पात्राच्छादन सानाम्। अतिथिभ्योऽतिथि संविभाग व्रतमुदीरितम् ॥ - -पूज्यभाव, भक्तिभावपूर्वक सन्मान से अतिथिरूप साधु संत महात्माओं को हर्ष सहित आहार, वस्त्र, पात्र आदि का दान करना यह बारहवाँ अतिथि संविभाग व्रत कहलाता है। यही बात योगशास्त्र में भी कही गई है कि- अतिथि-मुनि-भगवंतों को आहार-पात्रादि चार प्रकार के साधनों को देना–प्रदान करना यह अतिथि संविभागं व्रत कहलाता है। अतिथि= अ+ तिथि- जिसके आने की कोई निश्चित तिथि नहीं है। ऐसे साधु-मुनिराज । विहारार्थ, गोचर्यार्थ निकले हैं पर कब किस तिथि (दिन) को किसके यहाँ आएंगे यह कुछ भी निश्चित नहीं है ऐसे अतिथि साधु-मुनिराज को संविभाग= समान भाग करके अपने आहार-वस्त्र-पात्रादि अर्पण करना, वहेराना आदि यह इस १२ वे व्रत का स्वरूप है। इस व्रत के आचरण–पालन की परम्परा यह है कि...८ प्रहर (१ दिन रात) का पौषध करके चतुर्थभक्त उपवास का तप करके, दूसरे दिन पौषध के पारणे के दिन, एकाशन का व्रत करके साधु मुनिराजों को पडिलाभे, आहारादि बहोराए और अतिथि महात्मा ने जितनी बहोरी है उतनी ही स्वयं वापरना यह अतिथि संविभाग व्रत है। इस तरह यह व्रत वर्ष में १०-२०-५० बार जितनी बार करना हो वह संख्या अपने मन में - ६७४ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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