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________________ ० ५ ज्ञानपंचमी, मौनएकादशी आदि वार्षिक पर्वदिन में पौषध अवश्य करना। ६ आयंबिल की ओली या चौमासी चौदश, तथा पूनम आदि पर्यों में पौषध जरूर करना। पौषध लेकर दिन में सोना नहीं। ८ पौषध में स्वाध्याय-पाठ-अभ्यास, जाप-ध्यान, काउस्सग्गादि करना। ९ सोने के संथारे में अधिक उपकरण न वापरना। १० पौषध में विकथा, व्यापार, निंदा प्रपंच न करें। पौषध व्रत के ५ अतिचार संथारूच्चारविही पमाय तह चेव भोअणाभोए। पोसहविहि विवरीए, तइए सिक्खावए निदे। १ संथारा, चक्षु से देखकर बरोबर पडिलेहणादि न करके बिछाना करना-बैठने आदि में अतिचार लगता है। २ . संथारा भूमि आदि बिना प्रमाणे या जैसे तैसे किया, पूंजकर या बिना पूंजे करना-बैठना सोनादि में अतिचार लगता है। ३ २४ मांडला की प्रमार्जित भूमि में स्थंडिल मात्रादि के लिए जाते समय जीव जंतुओं का ध्यान न रखा, वसति शुद्ध न देखी हो तो अतिचार लगता है। लघु नीति, बडी नीति की भूमि की दृष्टि प्रमार्जना आदि न करते हुए, या अप्रमार्जित भूमि में करना आदि अतिचार है। आहारादि के त्याग पूर्वक ४ प्रकार के पौषधादि विधि पूर्वक न करके अविधि से पौषध करना, देह चिंता, पारणा की चिंता, आदि अविधि करने से यह अतिचार लगता है। उपरोक्त पाँचों अतिचार न लगे ऐसा पौषध करना। जयणा- पौषध लेने तथा पारने का निश्चित समय ध्यान रखना। अचानक अकस्मात आदि कारण से या अचानक रोगी बनने से, या अचानक ओपरेशन कराना पडा, अस्पताल में भर्ती होना पडा, या किसीकी मृत्यु आदि के प्रसंग पर शीघ्र जाना पड़ा ऐसी परिस्थिति में पर्व तिथि नियमानुसार आई और पौषध नहीं हो सका तो जयणा । वह रहा हुआ पौषध अनुकूलतानुसार आगेवाली पर्वतिथि, या अगले महिने कर लेना चाहिए। ऐसी जयणा रखनी परन्तु सर्वथा आराधना नहीं छोड देनी चाहिए। देश विरतिघर श्रावक जीवन ६७३
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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