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________________ २ अन्य सभी व्रतों में जो ज्यादा जयणा रखी है, उनकी आज आवश्यकता नहीं है, __ अतः आज के दिन उन सब जयणाओं का त्याग । सभी व्रतों की धारी हुई धारणाओं में आज के दिन और ज्यादा संक्षिप्तीकरण करके पच्चक्खाण करना। ३ १४ नियम आज दिनगत, तथा रात्रिगत प्रमाण-मर्यादा के अन्दर धारकर रोज-सुबह शाम देशावकाशिक पच्चक्खाण करना। ४ यह दसवाँ व्रत लेना हमेशा के लिए है, परन्तु धारना रोज की परिस्थिति के अनुसार, अतः अन्य व्रत लेनेवालों के लिए दसवाँ तो लेना ही पड़ता है। अन्य व्रतों के संक्षिप्तीकरण के लिए। - आयंबिल, उपवास, या एकासणा, करके १ दिन में ८ या १० सामायिक करके ऊपर दो प्रतिक्रमण करना । इस तरह वर्ष में १०, २०,१०० बार करना। . जयणा-धारणा धारने में कोई भूल या विस्मृति हो उसकी जयणा और अवसर पर प्रायश्चित करके आत्मशुद्धि करना। . ध्येय-विरति धर्म के बहुत समीप ले जानेवाला यह व्रत है । अतः जीवन पर्यन्त की या अमुक वर्ष की अवधि तक लिए हुए व्रतों का भी संक्षिप्तीकरण तथा शुद्धिकरण यह व्रत करता है। अधिक पापों में से बचाकर आत्मा की पापों से रक्षा करता है । आत्मा को अधिक उपयोगवन्त बनाना है । आनन्द-कामदेवादि महा श्रावकों की तरह उच्च कक्षा के श्रावक बनने का ध्येय रखना चाहिए। ग्यारहवाँ पौषधव्रत-(तृतीय शिक्षाव्रत) आहार-तनु-सत्काराऽब्रह्म-सावद्यकर्मणाम्। त्याग पर्व चतुष्ट्यां, तद्विदुः, पौषधव्रतम्॥ चतुष्पां चतुर्तादि-कुव्यापार निषेधनम्। ब्रह्मचर्य-क्रिया स्नानादि त्यागः पौषधव्रतम्॥ पौषध-पोषं = पुष्टिं.- धर्म का अधिकार होने से धर्म की पुष्टि को–धृ धातु-धारण करने अर्थ में हैं। धृ = धारण करना । धर्माराधना-शुभकरणी से ज्ञान-दर्शन चारित्रादि प्रमुख आत्मा के मूलभूत स्वाभाविक गुणों की पुष्टि हो, वृद्धि हो उसको धारण करानेवाला पौषध है। धर्म संग्रह ग्रंथ के उपरि श्लोक में तथा नीचे के योगशास्त्र के श्लोक में समान ' बातें कही गई है । (१) आहार (२) शरीर सत्कार (शोभा), (३) अब्रह्म (मैथुन) सेवन (४) देश विरतिधर श्रावक जीवन ६७१
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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