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________________ से करें । ऐसा भी मत है । सामायिक में धर्मग्रंथ का वाचन, स्वाध्याय,जाप ध्यानादि करना। इस तरह से १ दिन में १० सामायिकवाले देशावकाशिक व्रत के पच्चक्खाण आप १ वर्ष में कितनी बार करेंगे उसकी संख्या निश्चित करके भी यह दसवाँ व्रत लिया जा सकता है। १ वर्ष में १५ बार, २० बार या ५० बार इस तरह से १० सामायिक पूर्वक यह देशावकाशिक व्रत करूँगा इस तरह संख्या निश्चित करके यह व्रत लेना चाहिए। दसवें व्रत में लगनेवाले ५ अतिचार- . आणवणे पेसवणे, सद्दे रुवे अपुग्गलक्खेवे। देसावगासिमि, बीए सिक्खावए निदे॥ १ आनयन प्रयोग- अपनी धारणा के उपरांत बाहर की भूमि से वस्तु मँगाना, किसी को भेज कर मँगाना यह दोष है। प्रेष्य प्रयोग-अपनी धारी हुई सीमा के बाहर यहाँ से वस्तु या व्यक्ति को दूर भेजने से यह दूसरा दोष लगता है। ३. शब्दानुपात-जोर से ध्वनि करनी, ऊँचे से खासी खानी आदिशब्द संकेत से, धारी हुई सीमा के बाहर से वस्तु या व्यक्ति को बुलानी भेजनी आदि अतिचार है। ४ रूपानुपात- “मैं यहाँ हूँ, व्रत में हूँ,” ऐसा कहकर या दूरवाले को अपनी रूप-मुँह-हाथादि दिखाकर बोलना जिससे व्यक्ति या वस्तु आ जाए ऐसा करना या ऊपर-नीचे-आदि जाकर दूसरों को देखना आदि अतिचार है। पुद्गल प्रक्षेप- स्वयं घर में रहकर भी बाहर की व्यक्ति या नोकर को कंकड आदि फेंककर यह वस्तु लांनी है, या नोकर को बुलाना या अपना काम करने के लिए याद दिलाना आदि इस अतिचार में गिना जाता है । उपरोक्त पाँचो अतिचार इस दसवें व्रत में लगने की संभावनावाले हैं। अतः बताए हैं। ताकि इस अतिचारों से बचने की भावना रखें। इस व्रत में आप क्या करेंगे? १ छठे दिक् परिमाण व्रत में दिशाओं की तथा देशों की धारी हुई मर्यादा का संक्षिप्तीकरण आज के लिए करना । आज मुझे किस दिशा में कहाँ तक जाना है? आज कहीं नहीं जाना है अतः उन-उन सभी दिशाओं में न जाने तथा देशों में न जाने के पच्चक्खाण करना। ६७० आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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