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________________ थी, वह देशों के नाम की हो या, १०००,५०००, माइलों की संख्या में हो उनका इस दसवें व्रत से संक्षेप करने के लिए कहा है । यद्यपि (अमरीका, जपान आदि) देशों में जाने की (रोगादि कारण, पुत्र-पुत्री को मिलने आदि) कारण प्रसंग पर १, २, विदेशों में जाने की जो छूट रखी भी उसका आज संक्षेप करना यह देशावकाशिक व्रत कहलाता है । क्योंकि आज जबकि वह कारण उपस्थित नहीं है तो फिर निरर्थक उस रखी हुई छूट का दोष फिर क्यों लेना? आज तो जाना नहीं है अतः आज इस दशवें व्रत से संक्षेप कर लिया जाय। उसी तरह सातवें व्रत में भी भोग और उपभोग की सामग्री के पच्चक्खाण में मैंने जो जो बडी ज्यादा प्रमाण में छूट रखी है उन सबका आज प्रयोजन न होने से इस दशवें व्रत से संक्षेप कर लेना चाहिए। उसी तरह संबोध प्रकरण के श्लोक के उत्तरार्ध में इस तरह कहा है कि “सव्ववयाणं संखेवो” अर्थात् पहले जिसने सभी ९ व्रत लिये हैं उनमें लम्बे काल की जो बडी बडी छूटें (जयणा) रखी है। उन सभी का इस दसवें व्रत से संक्षेप करना यह देशावकाशिक व्रत है। अन्य सभी व्रत तो लम्बे काल के लिए या आजीवन के लिए लिये गए हैं, परन्तु यह दसवाँ देशावकाशिक व्रत तो प्रतिदिन, प्रतिरात्रि को धारने के लिए है। जैसे आप १४ नियम रोज धारते हैं, उसी तरह यह देशावकाशिक व्रत पिछले व्रतों में रखी बडी छूटों को याद करके संक्षेप करके आज दिन या रात में अब मुझे कितना रखना है ? कितना चाहिए? इत्यादि से संक्षिप्तीकरण करने रूप पच्चक्खाण किया जाता है। उदाहरणार्थ अमरीका जाने की छूट रखी होते हुए भी आज दिन में तो नहीं जाना है, रात में भी नहीं जाना है अतः देशावकाशिक का पच्चक्खाण लेकर उस छूट के दरवाजों को बंद कर दिया। इसलिए रोज नवकारशी या शाम को तिविहार, चोविहार का जो पच्चक्खाण करते हैं उसी तरह धारणा करके देसाव गासिक के पच्चक्खाण भी कर लेना चाहिए। योगशास्त्र में हेमचन्द्राचार्यजी ने “दिनेरात्रौ" दिन में तथा रात्री में इस संक्षेप के पच्चक्खाण करने का कहा है। और गंठिसहीयं आदि के पच्चक्खाण की तरह यह एक-दो प्रहरादि का भी लिया जा सकता है । प्रतिदिन अपनी जरूरियातें तथा गमनागमन की स्थिति–परिस्थिति का विचार करके यह व्रत लेना चाहिए। . देशावकाशिक व्रत का तीसरा विकल्प है कि प्राचीन परम्परा से एक दिन में दस सामायिक करने के नियम से भी देशावकाशिक व्रत किया जाता है । आज दिन में मैं १० सामायिक करूँगा ऐसा देशावकाशिक व्रत का पच्चक्खाण करके दिन में १० सामायिक करते हैं। इसमें एक विकल्प ८ सामायिक और २ प्रतिक्रमण = १० । इस तरह १० सामायिक करते हैं, और दूसरा पक्ष सामायिक १० ही होनी चाहिए। दो प्रतिक्रमण अलग देश विरतिधर श्रावक जीवन ६६९
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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