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________________ ४ अनवस्थान- पूरी ४८ मिनिट न होने पर भी पारना, दो घडी पूरी न होने देना किसी कदर पूरी करना, निर्धारित समय पर न करना, फिर कर लूँगा, बाद में कर लूँगा आदि प्रमाद सेवन इत्यादि अतिचार है। स्मृतिहीनता-घर दुकान आदि की कार्य व्यग्रता से भूल जाना कि मैंने सामायिक की है ? या नहीं की है ? सामायिक लेने का समय भूल जाना, आदि उपरोक्त पाँच अतिचारों को जानकर उन दोषों से बचना । सामायिक में घर संसार की निरर्थक बातें न करना । इसी तरह १० मन के १० वचन के १२ काया के ऐसे ३२.दोषों से बचने का संकल्प रखना चाहिए। समय तथा नियम होते हुए भी सामायिक न करना, प्रमाद करना, तथा सामायिक में ४ विकथा करनी, आदि अतिचार है । स्त्री आदि के संघट्टे से बचना । चरवला मुहपत्ति-कटासनाआदि उपकरण पूरे शुद्धन रखना। इस तरह अतिचारों से बचते हुए शुद्ध सामायिक करना। जयणा-अशक्ति रोगग्रस्तता तथा मुसाफरी आदि के कारण सामायिक न हो तो जयणा । आज करनी भूल जाय तो जयणा, परन्तु आगे-डबल करके नियम पूरा करना। आवश्यक कारण-निमित्तवश जयणा । ... ध्येय-आत्मा समभाव-समता में रहे यह ध्येय रखें । राग-द्वेष कम हो इस ध्येय से करें । अशुभ कर्मों का आश्रव न हो, पुराने कर्मों की निर्जरा हो आत्मा संसार से विरक्त होकर स्वभावदशा में लीन हो, आत्मा साधु तुल्य बनें इस ध्येय से सामायिक करें। ' दसवाँ देशावकाशिक व्रत-(द्वितीय शिक्षाव्रत) संक्षेपणं गृहीतस्य, परिमाणस्य दिग्वते। यत् स्वल्पकालं तद् ज्ञेयं, व्रतं देशावकाशिकम्॥ (धर्म संग्रह) देसावगासिंअं पुण, दिसिपरिमाणस्य निच्च संखेवो। अहवा सव्ववयाणं, संखेवो पइदिणं जो उ॥ (संबोध प्रकरण) दिग्वते परिमाणं यत् तस्य संक्षेपणं पुनः। दिने रात्रौ च देशावकाशिक व्रतमुच्यते॥... (योगशास्त्र) धर्म संग्रह के (१ ला) श्लोक संबोध प्रकरण के (२ रे) तथा हेमचन्द्राचार्य कृत योगशास्त्र के (३ रे) श्लोक में देशावकाशिक व्रत का स्वरूप बताया है वह इस प्रकार है। पहले जो छट्ठा दिग्परिमाण (दिशा के प्रमाण) का व्रत लिया है। उसमें आजीवन काल के लिए दशों दिशा में जाने को, या भिन्न-भिन्न देशों में, विदेशों में जाने की जो छूट रखी ६६८ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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