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नौंवाँ सामायिक व्रत-(प्रथम शिक्षाव्रत)
सावध कर्ममपक्तस्य, दुनिरहितस्य च।
- समभावो मुहूर्तं तद् व्रतं सामायिकाह्वयम् ।। - देशविरती धर्म में श्रावक जीवन योग्य १२ व्रतों में ५ अणुव्रत, ३ गुणव्रत के बाद ४ शिक्षाव्रतों की संयोजना है । शिक्षाव्रत का विभाग यहाँ से शुरू होता है । ४ शिक्षाव्रतों में प्रथम (बारह व्रतों में नौंवा) सामायिक व्रत है । छः जीवनिकाय की विराधना आदि रूप सावध पाप प्रवृत्ति-अविरति से बचकर, पच्चक्खाण करके निरवद्य-निष्पाप-विरति की प्रवृत्ति में आना, तथा दान-आर्त-रौद्रध्यान आदिछोडकर समभाव की समता में आना यह सामायिक व्रत है । “करेमि भंते" के पाठपूर्वक सामायिक व्रत है।
सामायिक व्रत का नियम-(१) प्रतिदिन नियमित अखंड रूप से सुबह, शाम, रात में या दिन भर में रोज की १, २, ३, ४, या ५, या १० सामायिक करनी । २ या एक सप्ताह में कुल मिलाकर १५, २० या २५ सामायिक करनी । ३ या १ महिने में कुल मिलाकर १००, १२५ सामायिक करनी । ४ या एक वर्ष में कुल मिलाकर ५०० या १००० सामायिक करनी । इत्यादि रूप से जिस प्रकार से आप संख्या धारना चाहें उस प्रकार से धारणा कर सकते हैं। प्रतिदिन की संख्या धारना आसान है। जिससे भूल न हो । और लिख लें, या सप्ताह के माध्यम से भी धारें । जैसी आपकी इच्छा। सामायिक व्रत के ५ अतिचार
तिविहे दुप्पणिहाणे अणवट्ठाणे तहा सइ विहूणे।
सामाइअ वितहकए पढमे सिक्खावए निंदे॥ १ मनोदुष्प्रणिधान-सामायिक में आर्त-रौद्र ध्यान करना, चिंता करनी, कुविकल्प
विचारना, दुष्पणिधान पूर्वक करना। . २ वचन दुष्प्रणिधान-सामायिक में सावध हिंसा हो ऐसा प्रेरक वचन बोलना, कर्कश ___ वचन बोलना, गाली गसोच करना, या अपशब्द बोलना, कलह करना आदि। . ३ काय दुष्प्रणिधान- सामायिक में नींद लेनी–सोना, लम्बे पैर करके या दीवाल के
सहारे से आराम से बैठना, घूमना, फिरना, चलना। आदि काया की हलन-चलन यह अतिचार है।
देश विरतिधर श्रावक जीवन
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