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२२ नारदीवृत्ति से झूठी सलाह देकर या चढाकर किसी को लडाना नहीं। २३ घोडे या जानवर मनुष्यों की रेस की योजना न करना, खेल न करना या पैसा लगाना
नहीं, सिनेमा के गीतों में, संगीत में व्यर्थ समय न बिगाडना । २४ हँसी-मजाक, विनोद-गप्पे, कव्वाली, या गजलों में रस न लेना। २५ मल्लयुद्ध, लडाई, कुश्ती, बोक्सींग, फाइटिंग, फ्री स्टाइल कराटे न करना, न देखना। आठवें व्रत के ५ अतिचार
कंदप्पे कुक्कुइए, मोहरि अहिगरण भोग अइरिते।
दंडमि अणट्ठाए, तइमि गुणव्वए निदे॥ । कंदर्प- काम (विषय-भोग), स्व या पर के लिए कामोत्तेजक भाषा, संकेतादि. अतिचार रूप है।
.. . कोकुच्यातिचार-अंगोपांग की विकार प्रेरक चेष्टाएँ करनी, स्व–पर के विकार जागृत हो, वासना भडके ऐसे प्रयोग चेष्टाएँ। मुखरता-गाली-गलोच की गंदी भाषा बोलना, पापोपदेश करना, अतिवाचालता
रखनी यह सब अतिचार है। ४ संयुक्ताधिकरण-बंदक में गोली डालनी, कल्हाडी में हाथ डालना, आदि शस्त्रादि
अधिकरण का त्याग करना चाहिए। अपने को चाहिए उससे ज्यादा अधिकरण रखना नहीं चाहिए। भोगातिरिक्त अतिचार-जरूरियात से ज्यादा भोग-उपभोग योग्य वस्तुओं का संग्रह तथा उपयोग यह अतिचार है। उपरोक्त पाँचो अतिचार-दोषों को जानकर उससे बचना चाहिए।
जयणा- जल्दबाजी में उपयोग न रहने से, नियम याद न आने से कोई भूल हो जाय, कोई दोष लग जाय तो जयणा । नाटक सिनेमा आदि सहेतुक नहीं देखना परन्तु भूल में जयणा या अनिच्छा से दुःख पूर्वक पति के साथ जाना पड़ा तो जयणा इत्यादि सामान्य रूप से भूल में जयणा।
ध्येय- आत्मा को धर्म सन्मुख लानी है। अध्यात्म योग पर अग्रसर होना है। निरर्थक पाप कर्मों से बचना है, जीवन विरक्त-वैरागी बनाना है। आत्मा को पापभीरू बनानी है । और अनेक पापों से बचने का, नए पाप कर्म न लगे ऐसे हेतु से बचने के शुभ . हेतु से, आत्म कल्याण के ध्येय से इस व्रत का पालन करना यह उचित है।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा