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२ निलछन कर्म - गाय के गले की पोली (चमडी) काटना, पशुओं के कान छेदना, या पशुओं को नपुंसक करना, अंगोपांग छेदन - भेदन, आदि निर्लांछन कर्म का व्यापार न
करना ।
३ दव दाह - जंगल जलाना, पहाड़ों पर, खेतों में आग लगाने का कर्म दवदाह कहलाता है । यह सर्वथा वर्ज्य है I
४ सर-द्रह तडाग - शोषण कर्म- सरोवर, तालाब, कुँए, बावडी, नहर आदि के पानी को सर्वथा सुखाना, निकालना, पानी का शोषण करना आदि शोषण कर्म न करना । असंख्य पंचेन्द्रिय मछलियाँ आदि मरे, हिंसा हो यह महापाप न करना ।
५ असती पोषण - क्रीडा आनन्द प्रमोद के लिए कुत्ते, बेल, सांढ, बिल्ले, बाघ, मेना,. मुर्गे आदि लडाना, भिडाना, धन कमाने हेतु से दासी नपुंसक, वेश्या आदि को पोषना, असती आदि का पोषण करना यह असती पोषण कर्म है ।
इस प्रकार से व्रती श्रावक को ५ कर्मादान, ५ वाणिज्य, और ५ सामांन्य कर्म १५ कर्मादान सर्वथा त्याज्य - वर्ज्य है । अनेक जीवहिंसा आदि महापाप का व्यापारादि न करना, न कराना ।
इस व्रत में धरने योग्य नियम
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सात व्यसनों का त्याग करना ।
पर्वतिथि के दिन हरी वनस्पति (लीलोतरी) का त्याग करना ।
आद्रा नक्षत्र के बाद आम (केरी) का त्याग करना ।
कच्चे दूध-दहीं के साथ कठोल एवं कठोल के पदार्थ द्विदल रूप में न खाना । दही गरम करके भोजन के साथ लेना ।
• आज का भोजन कल के लिए रखकर वासी न खाना ।
मधु मक्खन आदि न खाना ।
किसी भी प्रकार की मदिरा शराब-दारू देशी या विदेशी का सर्वथा त्याग करें ।
मांस एवं मांस से निर्मित मांसाहार की वानगीओं का भी सर्वथा त्याग करें ।
आध्यात्मिक विकास यात्रा