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वनस्पतिकाय- आज दिन में मेरे लिए । या ० ॥ किलो ही सिर्फ या ये ये.... . दो चार नामवाली ही आज वह भी इतनी ही (
वजन में) वापरूँगा । अन्य
सर्व का त्याग ।
सकाय - २, ३, और ४ इन्द्रियवाले जीव जन्तु तथा पंचेन्द्रिय छोटे-बडे किसी भी जीव को मैं जान बूझकर आज न मारने की प्रतिज्ञा करता हूँ । जयणा- - उपयोग रखूँगा ।
इस तरह उपरोक्त १४ नियम + ६ (षट्) काय का प्रतिदिन-रात त्याग करना, प्रमाण की मर्यादा बाँधना आदि की धारणा करनी चाहिए। जिससे श्रावक अच्छा उपयोगवंत, जयणा वाला आराधक बन सके। और कई अमाप निरर्थक जीव हिंसा आदि पापों से बच सके।
त्याग करना हो वहाँ x निशानी करें, कितना वापरना ? प्रमाण. . संख्या में या वजन में लिखें और उस धारणा के बाद कितना वापरा है यह लिखें। और धारणा में कितने बचे उसका लाभ रहा । तथा जयणा के खाने में छूट लिखें इस तरह कोष्टक के आधार पर ५ - १० बार करने से आदत बन जाएगी। सीख जाएँगे। फिर रोज धारते जाएँ ।
१५ कर्मादान
इंगाली - वणसाडी - भाडी - फोडीसुवज्जए कम्मं । वाणिज्जं चैव य दंतं, लक्खरस केस विस विसयं ॥ एवं खु त पील-कम्मं निल्लंछणं च दवदाणं । सर दह तलाय सोस, असई पोसं च वज्जिज्जा |
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१ इंगाल कर्म (अंगार कर्म्म) - जो व्यापार विशेषरूप से अग्नि के आधार पर होते हैं, जैसे- कोयले बनाना, भट्ठी जलानी, ईंट के निभाडे जलाना, लुहारी तथा सोनी का व्यापार न करें ।
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२ वन कर्म - जंगल काटने का ठेका लेना, वृक्ष काटना, कई संख्या में वृक्ष उखेडना, बुलडोझर चलाना, फल-फूल, पत्तियां, तने शाखा काष्ठ, बाग-बगीचे - वाडी आदि काटना, तोडना, नष्ट करना आदि वन कर्म का व्यापार नहीं करना ।
३ शकट कर्म - गाडा - गाडी, बैलगाडी, घोडा गाडी, ऊँट - गाडी आदि बनाना, बनवाना, बेचना आदि तथा गाडी - मोटर के कारखाने चलाना आदि व्यापार न करना ।
आध्यात्मिक विकास यात्रा