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कंद है । (२४) अमृतवेल- एक प्रकार की जल्दी बढनेवाली वेल लता विशेष है । (२५) भूमिफोडा-बारीश में छत्री के आकार के उगते हैं । जिसे गुजराती में 'बिलाडी ना टोप' भी कहते हैं । (२६) विरुढ (अंकुर) - चने-मूंग-उडीद आदि जब ठंडे पानी में घंटों भिगोकर रखे जाते हैं तो उनमें से सफेद अंकुरे निकलते हैं वे अनन्तकाय हैं । (अतः ठंडे पानी में भिगोकर रखे हुए अंकुरे फूटे हुए कठोल न खाएं) (२७) ढक्क वत्थुला की भाजी, (२८) शूकरवल्ली- जंगल में उगती एक जात की वेल–लताविशेष है । (२९) पालक
की भाजी-जिसे पल्लंक पल्यंक भी कहते हैं। यह पालक की भाजी अनन्तकाय है। (३०) कोमल ईमली-जिसमें बीज न बने हो ऐसी कोमल ईमली । (३१) आलु-बटाटे, (३२) पिंडालु-(डुंगली) कांदा या प्याज भी कहते हैं।
उपरोक्त ३२ प्रकार के अनन्तकाय की जातियाँ जो साधारण वनस्पतिकाय के नाम से प्रसिद्ध हैं । जिसके कण कण में अनन्त जीव हैं । अतः इन ३२ का सर्वथा त्याग करने से अनन्तकाय का त्याग करना ही हितावह है । (इन नामों के समानान्तर देश-देश एवं अपनी भाषा में प्रसिद्ध नामों से इन्हे समझें ।) भोग संबंधी ५ अतिचारों का त्याग करें_ सच्चित्ते पडिबद्धे, अप्पोलि दुप्पोलि अआहारे।
तुच्छोसहि भक्खणया, पडिक्कमे देवसि सव्वं ।। १ सचित्त आहार-सचित्त = सजीव-जीवयुक्त वस्तु खानी यह अतिचार है। २ सचित्त प्रतिबद्ध आहार-अचित्त बनाने पर भी दो घडी के अंदर खा ले या सचित्त
बीजादि मिश्रित वस्तु खाएँ तो दोष है। ३ अपक्व आहार-जो बराबर पूरा पका नहीं है । कच्चा है। ४ दुष्पक्व आहार- अर्धपक्व, अधूरे भुंजे हुए, न पके हुए कच्चे फलादि । ५ तुच्छौषधि भक्षण-जिसमें खाना कम और झूठा ही फेंकना ज्यादा हो ऐसी तुच्छ
वस्तुएँ, खाने से यह अतिचार लगता है । बेर, जामुन आदि ।
सचित्त के त्यागी को उपरोक्त ५ अतिचार (दोष) लगते हैं। और सचित्त के परिमाणवाले को नियम के अतिरिक्त खाने से दोष लगता है । ये भोग संबंधी ५ अतिचार हुए।
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देश विरतिघर श्रावक जीवन
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