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है और साधारण वनस्पति में अनन्त जीव हैं । अतः अनन्त जीवों की हिंसा करने की अपेक्षा तो बीजादिवाली प्रत्येक वनस्पतिकाय के सेवन में कम, गिनति की मर्यादित हिंसा ही होगी । अतः वे ही क्यों न खाए जाएं ? क्यों अनन्तकाय के खाने का आग्रह रखा जाय ? यह अनन्त जीवों की हिंसा कारक होने से वर्ज्य अभक्ष्य है। सीधी सी बात है ।
३२ अनन्तकाय पदार्थ
अनन्त ज्ञानी, सर्वज्ञ, केवली भगवान ने ऐसे अनन्तकाय पदार्थों का स्वरूप बताया है। वे अभक्ष्य हैं। वर्ज्य हैं। उदाहरणार्थ ३२ नाम नीचे दिए जाते हैं—
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भूमि कंद - जमीन कंद, या जमी, या भूमि कंद कहते हैं । कंद अर्थात् जमीन के नीचे होनेवाले, जमीन में रहा हुआ भाग । आर्द अर्थात् न सूखा हुआ ऐसा कंद । ये सर्व जाति के किसी भी प्रकार के कंद अनन्तकाय होने से वर्ज्य है । (१) वज्र कंद - कंद विशेष की जाती है । (२) सूरण कंद — सूरण जाति का कंद । (३) हल्दी — न सूखी हुई आर्द्र हल्दि, (४) आदु-अदरक- न सुखी हुई आर्द्र नरम ऐसी अदरक भी अनन्तकाय है । (हल्दी और अदरक स्वयं अपने आप धूप में सूखने के बाद उनका हल्दी चूर्ण तथा सूंठ के रूप में उपयोग कर सकते हैं ।) तन्तु - विशेष - तांतणे - रेशे होने से सूखने के बाद कल्प्य है, परन्तु यह नियम सभी के लिए नहीं है । (५) आर्द्र कचूरा - स्वाद में तीखा ऐसा हरा कचूरा । (६) हरी शतावरी, (७) वीराली - लता है। कोई 'सोफाली' भी कहते हैं । (८) कुमारी - कुंआर पाठा (९) थोर - हाथीया (पंजावाले) कांटेवाले सभी प्रकार के थोर । जिससे खेत की वाड बनाई जाती है । (१०) गलो - गडूची - जो लता है। नीम के वृक्ष पर भी चढती है । (११) लसुन, (१२) वंशकरेले, (१३) गाजर, (१४) मूला - देशी और विदेशी अर्थात् सफेद और लाल दोनों अनन्तकाय हैं। मूला के पांचों अंग-कंद, डांडली, फूल, पत्र, तथा मोगरा, मोगरी दाना आदि सभी अभक्ष्य है, त्याज्य है, (१५) लवणकलूणी नामक वनस्पति (१६) लोढक - पद्मिनि नामक वनस्पति का कंद (१७) गिरिकर्मिका - एक जात की लता है जिसे गरमर भी कहते हैं । (१८) किसलय - सभी प्रकार के नए उगे हुए कोमल पत्ते जिसमें नस शिराएं नहीं निकली है । (१९) खरसंयाकंद विशेष है । जिसे कसेरा, खीरिशुक भी कहते हैं । जिसकी हरी-हरी डंडीया होती हैं और जिसका दूध विषलक्षणवाला है, (२०) थेग की भाजी, (२१) हरी मोथ- सरोवरों के किनारे होती है । और पकने पर काली पडती है । (२२) लवण-नामक वृक्ष की छाल, शायद उसे भ्रमर वृक्ष भी कहते हैं । (२३) खिल्लहड - खिलोडजी या खिल्लह नामक
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आध्यात्मिक विकास यात्रा