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बदरीफल, गुंदी-छोटी-बडी, ईमली के म्होर, जामुन आदि में बीज बडे-बडे फेंकने पडे,
और खाना नाम मात्र रहे । तथा अति छोटी अवस्था में अनन्तकाय खाने का भी दोष लगना संभव है । अतः त्याज्य है । चूंकि असंख्य संमूछिम पंचेन्द्रिय आदि की जीवोत्पत्ति होती है, और हिंसा भी होती है अतः त्याज्य है।
२१ चलित रस अभक्ष्य- जिसके रस-स्वाद में परिवर्तन हो जाय, अर्थात् फल-फूलादि बिगड जाय, वह चलित रस में गिना जाता है । जैसे सडे हुए केले, चीकु, सेब, मुसंबी आदि बिगडने-सडने पर उसके वर्ण-गंध-रस-स्वादादि खराब हो जाते हैं, उनमें असंख्य त्रस दोइन्द्रिय लारीया जीवों की उत्पत्ति होती है । बैक्टीरिया उत्पन्न होते हैं। उसी तरह आज की रोटी, चावल, दाल, सब्जी, चटनी, पुरी, फरसान जो नरम है उन्हें बचने पर रखकर कल खाने को वासी कहा जाता है। फ्रिज में रखने पर भी उनके रस-वर्ण-गंधादि बदल जाते हैं । और असंख्य जीवों की उत्पत्ति होती है। ____ डबल रोटी आदि में असंख्य सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति होती है । तथा उस-उस वर्ण की फंगस होने से वह अनन्तकाय है और खाने से अनन्त जीवों की हिंसा का पाप लगेगा। अतःचलित रसवाले तथा वासी पदार्थ नहीं खाने चाहिए। रोटी को शेककर कडक खाखरे के रूप में बना दें फिर दूसरे दिन खा सकते हैं।
२२ अनन्तकाय(कंदमूलादि) अभक्ष्य- वनस्पति दो प्रकार की है (१) साधारण वनस्पतिकाय, और (२) प्रत्येक वनस्पतिकाय । जिसके एक शरीर में एक ही जीव हो वह प्रत्येक वनस्पतीकाय है । जैसे चीकु के ४ बीज है, सेब, संतरे, मुसंबी आदि फलों के एक-एक बीज में जीव है । उसी तरह हरी तरकारियों में भिंडि, आल-दुधी, करेला, तूरई, मिर्चि आदि में भी एक बीज में एक जीव है । जो गिने जा सकते हैं। इनमें एक बीज में एक जीव है । अतः हिंसा बहुत कम, मर्यादित है । जबकि एक शरीर में अनन्त जीव हो उसे अनन्तकाय या साधारण वनस्पतिकाय कहते हैं। अनन्त = जीवों की संख्या और काय = अर्थात् एक शरीर । ऐसे एक शरीर में रहे हुए अनन्त जीववाली वनस्पति अनन्तकाय या साधारण वनस्पतिकाय कहलाती है। जिसके खाने से अनन्त जीवों की हिंसा होती है । इनकी पहचान के लिए कहा है, (१) इनमें बीज नहीं होते हैं, (२) काटने पर भी पुनः उगते हैं, (३) नसें तथा शिराएं दिखाई ही न दें, गुप्त हो, (४) सन्धि-पर्वादि भी गुप्त हो, न दिखाई दें, (५) समभंग हो, (६) तांतणे-रेशे न हो ऐसे पदार्थ अनन्तकाय कहलाते हैं । इनके खाने से अनन्त जीवों की हिंसा का महापाप लगेगा । वनस्पति में जीव
देश विरतिधर श्रावक जीवन
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