________________
विशेषरूप से गृहस्थ जीवन में मौज-शोख, खान-पान आदि के निमित्त उपयोग में आनेवाली अनेक वस्तुएं पाप कर्म का प्रबल बंध करानेवाली मुख्य वस्तुओं का सर्वथा त्याग तथा कुछ को परिमित-सीमित करने के लिए यह व्रत कह रहा है । ऐसा न हो कि जो शरीर आदि के लिए न खाने योग्य अभक्ष्य पदार्थों का सेवन किया, जिससे आत्मा को भारी कर्म बंध हुआ और आत्मा को नरकादि गति में पाप की भारी सजा भुगतने जाना पड़ा। शरीर तो जड है। शरीर तो यहीं नष्ट हो जाता है वह कहाँ सजा भोगने नरक में आता है ? नहीं । शरीर के कारण किए हुए पापों की सजा भोगने के लिए अकेली आत्मा को ही नरकादि तिर्यंच की गति में जाना पडता है। ऐसे पदार्थ है-मदिरा-मांस-मक्खनादि २२ अभक्ष्य पदार्थ । अतः उनका त्याग करना ही हितावह है । यही यह व्रत कहलाता है।
२२ अभक्ष्य
१ मध (शहद), २ मक्खन (Butter), ३ मदिरा (शराब), ४ मांस, ५ वटवृक्ष के फल (टेटा) (५ उदुंबर फल), ६ पीपला के फल (टेटा), ७ कोठींबडा (काकउमरी) कालुंबर, ८ पीपला की पीपडी (प्लक्ष जाती की), ९ उदुंबर फल (उंबर वृक्ष के फल) (गुलर), १० हिम (बरफ), ११ विष (जहर), १२ करा, १३ सर्व प्रकार की मिट्टि,१४ रात्रि भोजन, १५ बहुबीज फल, १६ ३२ अनन्तकाय, १७ बोल अचार, १८ द्विदल (विदल), १९ बेंगन, २० अज्ञात-अन्जाने फल, २१ तुच्छ फल, २२ चलित रस।
१ चार महाविगई-मध, मक्खन, मदिरा और मांस इन ४ को महाविगई का नाम दिया है । इसमें उस रंग के असंख्य दो इन्द्रियादि त्रस जीवों की उत्पत्ति नाशरूप हिंसा होती है । विकार करनेवाली है । असाध्य व्याधियाँ-रोगादि कारक है । अतः त्याज्य है । मध मदिरा (शराब) मांसादि की उत्पत्ति में बनाने की कर रीति में भी असंख्य जीवों की हिंसा का दोष है । मांस तो वैसे भी पंचेन्द्रिय की हिंसा के बिना प्राप्य भी नहीं है । अतः चारों त्याज्य हैं।
. २ पाँच उदुंबर फल-५ से ९ तक के पाँच उदुंबर फल सर्वथा त्याज्य हैं । ये जंगली फल हैं। इनमें छोटे छोटे अगणित बीज होते हैं । इन पांचों प्रकार के फलों में छोटे मच्छर के आकार के अति सूक्ष्म अनेक त्रस जीव होते हैं । अतः खाने से वे सभी मरेंगे, सब की हिंसा होगी । जीवन निर्वाह के लिए अनुपयोगी होने से सर्वथा त्याज्य है।
६५०
आध्यात्मिक विकास यात्रा