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छट्ठे व्रत के पाँच अतिचार
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गमणस्स उ परिमाणे, दिसासु उड्डुं अहे अ तिरिए य । वुड्डी सइ अन्तरद्धा, पढमंमि गुणव्वए निंदे ।
ऊर्ध्वदिक् प्रमाणातिक्रम - ऊपर अमुक.. कुछ माइलों तक ही जाना और उससे ऊपर न जाना ऐसा प्रमाण धारने के बाद भी वह प्रमाण या धारणा टूट जाय तो अतिचार लगता है ।
अधोदिक् प्रमाणातिक्रम - उपयोग के बिना अधो = नीचे की दिशा या देशों में जाने का प्रमाण या धारणा जो थी उससे अधिक गए तो यह अतिचार लगता है । तिर्यक्दिक् प्रमाणातिक्रम- पूर्व-पश्चिम - उत्तर और दक्षिण की दिशाओं में जाने की मर्यादा या उन दिशाओं के देश तथा विदेशों में अमुक देश या... अमुक माइल तक जाने की जो धारणा थी उसका उल्लंघन करके अधिक जाने से यह अतिचार लगता है।
क्षेत्र वृद्धि अतिचार - किसी क्षेत्र विशेष में १०० माइल तक ही जाने की मर्यादा निश्चित की थी और समय पडने पर जाते जाते और लोभ लगा और १०० माइल की मर्यादा तोडकर उस दिशा की मर्यादा बढाकर २००, ५०० माइल मन से बढा दी और चले गए तो, व्रत में धारी हुई मर्यादा की संख्या का उल्लंघन करने रूप यह अतिचार लगता है । अतः धारणा या प्रमाण में परिवर्तन न करें ।
स्मृत्यन्तर्घाम अतिचार - स्मृत्यन्तर्धाम का अर्थ है विस्मृति हो जाना । भूल जाना कि मैंने इस दिशा में कहाँ तक जाने की मर्यादा निश्चित की थी ?१०० माइल चले जाने के बाद मन में संशय खडा हुआ कि मैंने कितनी धारणा रखी थी ? और वह विस्मृति हो गई और फिर भी आगे ही आगे चलते ही गए तो यह अतिचार लगता है ।
व्रतधारी आराधक उपरोक्त पाँचों अतिचारों को समझकर उनसे अवश्य बचने का उपयोग रखें ।
इस व्रत में रखने योग्य नियम
१ चातुर्मास में सर्वथा अपने रहने के गाँव या शहर के बाहर न जाना । २ पर्युषण - ओली आदि पर्वों में सर्वथा बाहर देशों में न जाना ।
देश विरतिधर श्रावक जीवन
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