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________________ की विषय-वासना का त्याग करने का ध्येय रखें यही ऊँचा ध्येय है, इन पवित्र ध्येयों से इन व्रत-नियमों का पालन करें। आजीवन अखंड ब्रह्मचर्य (संपूर्ण चतुर्थ व्रत) - . - ४०-५० वर्ष की आयु के पहले या पश्चात् भी विषय-वासना की वृत्ति का सर्वथा त्याग करके उत्तरावस्था में शुद्ध संपूर्ण ब्रह्मचर्य-पालन करने की प्रतिज्ञा। साधुवत् ब्रह्मचर्य पालने के लिए संपूर्ण ब्रह्मचर्य का पच्चक्खाण करें । संपूर्ण चतुर्थ व्रत स्वीकारें । स्व पत्नी होते हुए भी एक खाट-पलंग पर साथ नहीं सोना चाहिए। स्वतंत्र अलग दूर सोकर शुद्ध ब्रह्मचर्य पालें । विजय शेठ और विजया शेठणी की तरह रहें । एक दूसरे की बिमारी में, अस्पताल आदि में सेवा करने की छूट है । ४०, ५० या ६० जिस आयु से मन दृढ हो जाय तो पति-पत्नी दोनों साथ में संपूर्ण आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा स्वीकारें। पाँचवाँ अणुव्रत- स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत परिग्रहस्य कृत्स्नस्यामितस्य परिवर्जनात् । इच्छा परिमाणकृति जगदुः पञ्चमं व्रतम् । - बहुत अत्यधिक संग्रह अर्थात् अपरिमित परिग्रह का परिमाण करना, अनन्त इच्छा का त्याग करना, या इच्छा को परिमित करना यह श्रावक धर्म योग्य पाँचवा परिग्रह परिमाण स्वरूप अणुव्रत कहा है। इसी का दूसरा नाम “इच्छा परिमाण व्रत" भी रखा है। चूंकि इसमें इच्छा का त्याग करने की, मर्यादा बांधने की बात है । आज दिन तक जीव ने अमर्यादित रूप से पदार्थों का संग्रह हद से काफी ज्यादा किया है.। न इच्छा पर नियंत्रण रहा, और न ही वस्तुओं के संग्रह पर । परिणाम यह आया कि अमाप वस्तुएं जीव इकट्ठी करता ही गया । वस्तुएँ सभी जड़, तो भी संग्रह किया। इन सब पर मोह-ममत्व और मूर्छा बढती ही गई। और मेरा... मेरा... मेरा .. करके तीव्र राग और मोह से जीव ने कितने कर्म बांधे? ये सब पदार्थ संसार बढानेवाले अधिकरण बने । कई छोटी-बडी वस्तुओं ने कई जीवों का संसार बिगाडा है, भव और गति बिगाडी है। हकीकत में वस्तु नहीं परन्तु वस्तु के उपर जो गाढ मोह-ममत्व भाव है उससे भव-गति बिगडती है । एक तरफ परिग्रह आरंभ-समारंभ आदि हिंसा का पाप कराता है । ब्रह्मदत्त और सुभूम चक्रवर्ती आदि जैसे चक्रवर्ती सातवीं नरक में गए हैं। अतः संतोष होवे ही नहीं, इच्छा पूर्ण होवे ही ६४२ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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