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२५ स्व पुत्र-पौत्र की शादि सिवाय अन्य किसी के विवाह-शादि-सगाई आदि
जोडना-कराना नहीं। २६ छिप-छिपकर स्त्री पुरुष के अंगोपांग तथा रति क्रिडा आदि न देखना, न दूसरे को
दिखाना। २७ कामोत्तेजक गंदा साहित्य कभी भी न पढना, “ब्लु फिल्म" आदि सर्वथा न देखने
के पच्चक्खाण करना। २८ कामशास्त्र आदि संबंधी गंदे साहित्य कभी खरीदना और पढ़ना नहीं। २९ विकार खानपान, गंदे चित्र, चलचित्र, आदि न देखना। ३० कुछ समय के लिए किराए पर स्त्री, दासी, नोकरानी आदि रखकर देह संबंधादि न
करना। ३१ अपने से भिन्न धर्म, ज्ञाती और देश की स्त्री कन्या आदि से शादि न करना, न
किसीकी कराना। ३२ एक स्त्री होते हुए दुसरी शादी न करना, दुसरी पत्नी न करना। ३३ स्त्रियाँ एकपतिव्रता धर्म पालें। ३४ एक पत्नी होते हुए अन्य स्त्री से प्रेम संबंध न बांधे, प्रेमिका न बनावें ।
(सूचना—उपरोक्त सभी नियमों में पुरुष को लक्ष में लेकर बात की गई है। वहाँ स्त्रियाँ सभी परपुरुष के संबंध में नियम करें।)
जयणा- स्वप्न में ब्रह्मचर्य का भंग हों, स्वप्न दोष हो जाय, मन से किसी के प्रति खराब विचार आ जाय, मानसिक मैथुन हो जाय या नियमानुसार तिथि, दिन की गिनति भूल जाय, या छोटी जगह में अन्यों के बीच या पास सोने में भूल से स्पर्श हो जाय आदि में जयणा । अचानक भूल से किसी के अंगोपांग दिख जाय तो जयणा। - ध्येय- हमारा ध्येय अखंड ब्रह्मचारी बनने का है । आजीवन शुद्ध ब्रह्मचर्य पालने के पवित्र ध्येय से आगे बढना है । और उससे भी आगे साधुता और योगी अवस्था प्राप्य करने का अपना ध्येय है । ब्रह्म का अर्थ है- आत्मा-परमात्मा, चर्य-उसमें लीन होना, ब्रह्म-आत्म गुणों का ही आचरण करना यह ब्रह्मचर्य है । ऐसी स्वगुणरमणता में पहुंचने का हमारा ध्येय है । अनादि अनन्त काल की यह मैथुन संज्ञा जो हमारे में पड़ी है, जिस मैथुन संज्ञा के कारण अनेक पाप कर्म बांधे, अनेक जन्म बिगाड़े हैं, उस मैथुन संज्ञा–काम
देश विरतिधर श्रावक जीवन
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