SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ गिनति में संख्या की चोरी करके वस्तु नहीं चोरनी। . १५ वस्तु में मिश्रण मिलावट कभी नहीं करना। १६ चोरी करके लाई हुई वस्तु चोर यदि मुफ्त भी देवे तो न लेना, या कम दाम में भी न लेना। १७ चोरों को चोरी के काम में दिशा-मार्ग बताने आदि में सहायता नहीं करनी। १८ चोर के साथ किसी प्रकार की लेन देन का संबंध न रखना। १९ तस्करी (दाण चोरी) (स्मग्लिग) का काम बिल्कुल न करना। २० किसी वस्तु के यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ करने रूप स्थानान्तर करना या छिपाना आदि का काम न करें। २१ चूंगी (जकात) की चोरी न करना। तीसरे व्रत के पाँच अतिचार तेनाहडप्पओगे-तप्पडिरूवे-विरुद्धगमणे । कूडतूल कुडमाणे पडिक्कमे देवसि सव्वं ॥ १ स्तेनाहत-चोर के द्वारा चोरी करके लाई हुई वस्तु जान बूझकर लेना, खरीदना आदि। २ तस्कर प्रयोग-चोरी करनेवाले को किसी भी प्रकार की मदद करना। .... तत्प्रतिरूप व्यवहार- तत्त्रतिरूप व्यवहार अर्थात् है उससे विपरीत करना, सच्ची में झूठी की, शुद्ध में अशुद्ध का, रंग-रसादि की समानतावाले पदार्थों की मिलावट-मिश्रण (भेल सेल) करना, तथा अच्छा नमुना दिखाकर खराब वस्तु देना इत्यादि। ४ विरुद्ध गमन- राज्य के कानून के खिलाफ व्यवहार करना, चूंगी (जकात) महसुल दिए बिना चुपचाप वस्तु ले जाना आदि। . ५ . कुडतूल कुडमाणे-मान-माप-तोल कम ज्यादा रखकर वस्तु कम तोलनी, कम देनी, इत्यादि। उपरोक्त ये पाँचो अतिचार तीसरे व्रत के हैं, वे जानकर आचरने का प्रयल नहीं करना चाहिये । पाप से बचने की इच्छावाला अतिचारों की जानकारी जरूर लें परन्तु भूल से भी न आचरें। ६३६ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy