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४ प्रकार से अदत्तादान स्वामी जीव तीर्थंकर गुरु (१) सोना चांदी रुपया पैसा आदि वस्तुएँ स्वयं मालिक के दिए बिना, उसकी आज्ञा के बिना चोरनी यह स्वामी अदत्त है । (२) वृक्ष पर से फल-पत्ते आदि सचित्त काटना, तोडना यह जीव अदत्त है । (३) तीर्थंकर भगवान की आज्ञा जिसमें नहीं है ऐसा वर्तन करना-जैसे आधाकर्मी आहार लेना आदि तीर्थंकर अदत्त है । उसी तरह अनन्तकाय अभक्ष्य आदि का भक्षण करने में तीर्थंकर की आज्ञा नहीं है और वह खाना अर्थात् तीर्थंकर की आज्ञा की चोरी करके आज्ञा विरुद्ध खाना यह तीर्थंकर अदत्त है । (४) गुरु महाराज को निमंत्रण दिए बिना वहेराए बिना वापरना आदि गुरु अदत्त है । इन चारों प्रकार के अदत्त से बचना ही व्रती का कर्तव्य है।
इस व्रत में पालने योग्य छोटे नियम१ किसीके यहाँ चोरी करनी नहीं और करानी नहीं। २ किसीकी गांठ-पेटी–अलमारी खोलनी नहीं। ३ जेब काटना आदि न करना। ४ ताला तोडकर वस्तु चोरनी नहीं। ५ मालिक की आज्ञा के बिना वस्तु न चोरनी । लूट फाट करना नहीं और करानी भी
नहीं । और न ही किसी भी प्रकार की लूट में भाग लेना। ६ किसी की गिरी हुई वस्तु की चोरी म करना। ७ रास्ते में पडी वस्तु भी नहीं उठानी। ८ नींद में सोए हुए की जेब में से चोरना नहीं। ९ चोरी का माल सस्ते में नहीं खरीदना। .
आयकर विभाग की चोरी नहीं करना। . ११ करचोरी नहीं करनी। १२ तराजु आदि तोल माप में कम देने की वृत्ति से चोरी नहीं करनी । कपडा आदि
मापने में चोरी नहीं करनी। १३ राज्यदंड आए वैसी कोई चोरी नहीं करनी ।
देश विरतिघर श्रावक जीवन
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