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________________ दूसरे व्रत के ५ अतिचार -सहसाभ्याख्यान, रहोअभ्याख्यान, स्वदारा मन्त्रभेद, मृषोपदेश, और कूटलेख ये पाँच प्रकार के अतिचार (दोष) दिन संबंधी लगे हो उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । ४ सहसा - रहस्स - दारे - मोसुवएसे अ कूडलेहे अ । बीय वयस्सअईयारे, पडिक्कमे देवसियं सव्वं ॥ - ६३२ सहसा अभ्याख्यान - सहसा का अर्थ है— एकाएक सहसात्कार - बिना विचारे एका एक अभ्याख्यान अर्थात् आरोप- कलंक लगाना । “तू चोर है, वेश्यागामी, परस्त्रीगामी, दुराचारी है” इत्यादि अचानक कहना । 1 रहो अभ्याख्यान - रहसि का अर्थ है एकान्त में । अडोस-पडोस की या किसी की भी गुप्त बातों को कह देना, प्रगट करना, किसी के भी गुप्त पापों को जाहीर में प्रकट करना, आरोप लगाना आदि । स्वदारा मन्त्र भेद - स्व पत्नी की मार्मिक गुप्त बातें जो कि पत्नी ने पति में पूर्ण विश्वास रखकर दिल खोलकर कह दी हो उसे प्रसंग आने पर विश्वास भंग करके कह देना प्रकट करना, स्व पत्नी आदि की गुप्त मार्मिक बात को सबके बीच में कहना यह भी अतिचार है । मृषोपदेश - मृषा = झूठा उपदेश देना, दो झगडे में, बीच में मध्यस्थी करके झूठी सलाह देना, गलत रास्ता बताना, झूठी शिक्षा, सत्य- सदाचार, न्याय-नीति के विपरीत झूठा उपदेश करना इत्यादि । कूटलेख - झूठे दस्तावेज लिखना, हिसाब, चोपडे, खाते झूठे लिखकर किसी के हस्ताक्षर, मुद्रा, मुहर, अक्षर आदि बनाकर अपने आप लिख देना, झूठा अर्थ लिखना, कम वेतन देकर ज्यादा, या ज्यादा वेतन ठहराकर कम देना इत्यादि अतिचार है । ऊपर के पाँच अतिचार मृषावाद विरमण व्रत में जो लगते हैं वे यहाँ बताए हैं । इसे जानकर छोडने का प्रयत्न करना चाहिए । se मृषावाद त्याग संबंधी-नियम वैसे तो आप मृषावाद का स्वरूप समझ ही गए होंगे फिर भी सुविधा के लिए इस दूसरे व्रत में त्याज्य ऐसे छोटे-छोटे नियम नीचे लिखता हूँ । आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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