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________________ होते हुए भी नहीं है ऐसा कहना, सुलक्षणी होते हुए नहीं है यह कहना, इत्यादि कन्या . के रूप, जाति, गुण, शील आदि संबंधी हेतुपूर्वक झूठ बोलना यह कन्यालीक कहलाता है । किसीके चारित्र-शील पर असत्य आरोप आदि लगाते हुए बोलना यह भी मृषावाद है । कन्यालीक से सभी मनुष्यादि समझना । २ . गवालीक- गाय-भैंसादि पशु के संबंध में झूठ बोलना यह गवालीक है। अलीक-का अर्थ है-झूठ.। दूध देनेवाली गाय-भैंस को भी नहीं यह दूध देनेवाली नहीं है ऐसा कहना, या अधिक दूधवाली को अल्प दूधवाली, छोटी आयु की गाय-भैंसादि को भी वृद्ध-बूढी कहकर बेचना तथा पराई को अपनी या अपनी को पराई कहना आदि गाय-भैंसादि संबंधी गवालीक प्रकार का मृषावाद है। .. गवालीक से गायादि सभी पशु समझना। . ३ भूम्यलीक- भूमि आदि संबंधी झूठ, भूमि, जगह, जमीन, जायदाद, खेत, बंगला, प्लोट, बगीचा, वाडी, दुकान, मकान, घर, हाट, हवेली, आदि संबंधी झूठ बोलना। पराई जमीन आदि अपनी कहना, अपनी को पराई कहना। न हो उसे भी अपनी कहना, अपने संबंधी की कहना, उखर भूमि को रसवती कहना, धन-सोना-चांदि के आभूषण, हीरा-मोती, संपत्ति-मिल्कत आदि संबंधी झूठ बोलना इत्यादि भूम्यलीक है। न्यासापहार (थापण मोसो) - थापण–अर्थात् पूंजी, संपत्ति किसी ने अपनी थापण आपके यहाँ रखी हो और हम उस विश्वास का भंग करके मोहवश उसे अपनी ही बना लेवें । चल-चलतेरी कहाँ से आई.यह मेरी है । इत्यादिन्यासापहार संबंधी झूठ है। जमीन-मकान के पट्टे,दस्तावेज गहने आदि की थापण के विषय में किसी विश्वासू के साथ विश्वासघात करने रूप मृषावाद का सेवन नहीं करना। कूटसाक्षी-लेने-देने आदि के संबंध झूठी साक्षी देना । किसी दो व्यापारी आदि ने लेन-देन में आपको साक्षी बनाया हो, ऐसे विषय में कभी लांच-रिश्वत आदि लेकर बदल जाना, झूठ बोलना, भाषा-वचन में बदलकर देना और समय पर झूठी साक्षी देना–यह कूटसाक्षीरूप मृषावाद है, इससे बचना । देव-गुरु धर्म की सोगन नहीं खानी चाहिए। उपरोक्त ये पाँच स्थूल-बडे झूठ के प्रकार हैं । श्रावक कम से कम इन पाँच प्रकार के स्थूल मृषावाद से अवश्य बचें। देश विरतिवर श्रावक जीवन ६३१
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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