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साधें । अपराधी के प्रति भी दया रखें। आगे बढ़ते हुए सर्वथा त्यागी बनने की भावना
रखें ।
दूसरा अणुव्रत स्थूल मृषावाद विरमण व्रत
द्वितीयं कन्या - गौ भूम्यलीकानी न्यास निह्नवः । कूटसाक्ष्यं चेती पञ्चासत्येभ्यो विरतिर्व्रतम् ॥
-" कन्यालीक" आदि पाँच प्रकार के असत्य वचन अतिक्लिष्ट (दुष्ट) आशय, (अध्यवसाय) से बोले जाते हैं । अतः उन्हें बडा स्थूल असत्य कहते हैं । उनका त्याग
करना ।
यह मृषावाद विरमण अर्थात् असत्य त्याग रूप दूसरा अणुव्रत कहा है । मृषा का अर्थ है असत्य (झूठ और वाद का अर्थ है बोलना या कहना मृषावाद = अर्थात् असत्य बोलना झूठ बोलना । जो सत्य स्वरूप है उससे विपरीत बोलना या विकृत करके बोलना । अनेक विषयों में असत्य बोला जाता है। लेकिन संसारी - गृहस्थ के लिए कन्या आदि संबंधी मुख्य पाँच असत्यों का त्याग करने रूप यह दूसरा स्थूलरूप से मृषावाद विरमण व्रत है । विरमण = बचना, छोडना - त्याग करना । अतः इस व्रत में असत्य झूठ न बोलने की प्रतिज्ञा है । सर्वथा मूलतः संपूर्ण रूप से असत्य का आजीवन त्याग करने के लिए गृहस्थ समर्थ नहीं है । अतः स्थूल रूप से-मोटे तौर पर कन्यादि संबंधी पाँच प्रकार के मुख्य असत्य न बोलें ऐसा यह व्रत कहता है ।
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कन्या - गो-भूम्यलीकानि, न्यासापहरणं तथा । कूट साक्ष्यं च पञ्चेति, स्थूलासत्यान्यकीर्त्तयन् ॥
- कन्या (पुत्री), गाय - - भैंसादि पशु, भूमि - जमीन, थापण, मिल्कत संबंधी तथा साक्षी देने आदि के विषय में इन मुख्य पाँच विषयों में असत्य नहीं बोलने की प्रतिज्ञा रूप यह स्थूल असत्य विरमण व्रत है। दूसरे अणुव्रत के रूप में कहा है ।
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कन्यालीक - कन्या (पुत्री) के विषय में झूठ बोलना यह कन्यालीक कहलाता है । स्वार्थ या मोहवश स्वकन्या या अन्य कन्या के सगाई-सगपण तथा शादि आदि के विषय में झूठ बोलना । अर्थात् १६ वर्ष की कन्या को १८ – २० वर्ष की कहना । या २५ वर्ष की कन्या को २० -: - २२ वर्ष की कहना । या अनपढ को लिखी कहना, विषकन्या को निर्विष कहना, या निर्विष को विषवती कहना, पराई को अपनी कहना या अपनी को पराई कहना, या स्व-पर की किसी भी कन्या के विषय में रूपवती
आध्यात्मिक विकास यात्रा