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१३ किसी भी मनुष्य का पंचेंद्रिय प्राणी का खून- -वध न करें ।
१४ कैसे भी झगडे में “तुझे खतम कर दूंगा”, “अब तो तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा”, इत्यादि बोलें, और न वैसा करें ।
१५ किसीको पैसा देकर या वश करके किसी का खून वधादि न करावें
९६ पशु-पक्षी मारकर उनके खाल की बनाई हुई टोपी फर-कोट, मोजे, हाथ के मोजे, पर्स, पाकीट आदि न वापरें ।
१७ कोड लिवर, लिवर एब्स्ट्रेक, आदि प्राणीज दवाइयां न वापरें ।
१८ प्राणी हिंसा जन्य सौन्दर्य प्रसाधनों का सर्वथा त्याग करें ।
१९ कोशेटों (कीडों) से बनाया हुआ प्योर सिल्क- शुद्ध रेशम तथा उसके कपडे सर्वथा न वापरें ।
२० मक्खी, मच्छर, भंवरे, मेंढक आदि न मारें ।
२१ डॉक्टरादि की सलाह आदि कारणों से भी कहे जानेवाले शाकाहारी अंडे, या अंडो की बनी वस्तु भूल से भी न खाएँ ।
२२ मांसाहारी होटल में बिल्कुल न जाना, न ही मिश्र होटल में जाना, तथा मांसाहारी पदार्थ सर्वथा न खाएँ ।
२३ प्राणीज वस्तुएँ तथा प्राणीओं के अंग, हाथीदांत, चमडा, हड्डी, नाखून, सांप की काचली आदि न स्वयं वापरना, और न ही व्यापारादि करना ।
२४ अनन्तकाय - कन्दमूल, आलु, प्याज, लहसून, आदु, गाजर, मूला आदि न वापरें । २५ कोई किसीको मारता हो तो जरूर बचावें, बिल्ली चूहे- कबूतरादि को मारती हो तो - जरूर बचावें ।
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२६ हिंसक - क्रूर वृत्तिवाले के साथ मित्रता - या व्यवहार न करें । २७ शस्त्रास्त्र का लेन-देन - व्यापार प्रयोगादि न करें ।
इस व्रत पालन का ध्येय
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छोटे बडे जीवों की रक्षा करना सीखें। जीव दया प्रेमी बनें। दयालु बनते जाएँ । “ आत्मवत् सर्वभूतेषु ” की भावना को विकसाते जाएँ । दया धर्म को फैलाते जाएँ। जिनाज्ञा पालन करें । भक्षक मिटकर रक्षक बनें । " अहिंसा परमो धर्मः” का झंडा लहराएँ । हिंसा का मार्ग छोडकर अहिंसा पथ पर प्रयाण करते हुए पूर्ण - शुद्ध - अहिंसक बनने का लक्ष्य
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देश विरतिधर श्रावक जीवन
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