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खास सूचना - सभी व्रतों में लगनेवाले अतिचारों (दोष) का स्वरूप सभी व्रतों के साथ बताया गया है । पाप से बचने के लिए पाप का स्वरूप भी जानना जरूरी है । अतः साधक व्रती जीव अतिचारों को अच्छी तरह जानकर उनसे बचने का प्रयत्न करें । अतिचारों का सेवन न करें। और भूल से लगे हुए अतिचारों की क्षमा याचना करें । अतिचारों का सेवन भूल से भी पुनः न हो यह ध्यान रखें ।
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जयणा (यतना) घर काम में, व्यापारादि में, रसोई आदि कार्य में, पृथ्वी, अप- - तेज - वायु, वनस्पति- त्रसकायादि षट्काय (छः जीवनिकाय) जीवों की विशेषकर आरंभ-समारंभादि कार्यों में स्थावर जीवों की हिंसा न हो, ज्यादा न हो इसकी पूरी जयणा (उपयोग) रखें । अन्जान में हुई जीव हिंसा का प्रायश्चित कर लेना चाहिए ।
प्रथम व्रत में पालने योग्य नियम
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बिना छाना हुआ पानी न पीएं। स्नानादि में भी न वापरना ।
भोजन के बाद थाली नियमित धोकर पीए, जूठा न डालें ।
पानी के घडे आदि में जूठा ग्लास पुनः न डालें। जूठा चमचा पुनः तपेले में न डालें । सडे हुए अनाज - लकडे, शाक सब्जी-फल-फूल - धान्य कठोल न वापरें । वासी न वापरें ।
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पेस्टकंट्रोल करावे, या फ्लिट छाँटकर जीवजन्तु न मारे । विषैली दवा, गोलीयाँ आदि न डालें जिससे अनेक जीव जन्तु मरें ।
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पुंजणी तथा घर में १० स्थानों पर चंदरवा रखें ।
९ चूल्हे में जलानेवाले लकडे तथा छाने आदि में छोटे बडे जीव की पहले से ही जयणा कर लेना चाहिए ।
हरी घास - पानी आदि में चलना नहीं । वृक्ष के पत्ते - फलादि तोडना नहीं ।
हिंसा ज्यादा हो ऐसी दवाइयाँ खेत में, घरादि में न छांटें, दीमक लगी हुई पुस्तकें तथा लकडों पर दवाई न छांटे ।
१० देखे हुए साँप - बिच्छु आदिको ईंट, पत्थर आदि से न मारें ।
११ गिलोल, पिस्तोल आदि से निशान लगाकर पशु-पक्षी न मारें ।
१२ पिस्तोल, बंदूक, तलवार, छूरी - चाकू आदि घातक शस्त्रों से न किसी को मारें, और नही मारने के लिए उपयोग करें ।
आध्यात्मिक विकास यात्रा