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________________ नहीं बच सकता। अतः निरपराधी को न मारना ऐसा पच्चक्खाण करता है। इसमें भी सापेक्ष और निरपेक्ष दो भेद होते हैं। इसमें निरपराधी के २ ॥ विश्वा में से १ । विश्वा ही शेष रही । अतः श्रावक २० विश्वा दया में से १ । विश्वा दया का ही पालन कर सकता है। अतः श्रावक के लिए प्रथम प्राणातिपात विरमण व्रत की प्रतिज्ञा यह हुई कि- “निरपराधी स्थूल त्रस जीवों को संकल्प पूर्वक निरपेक्ष बुद्धि से नहीं मारना" । संकल्पपूर्वक निरपराधी स्थूल त्रस जीवों की हिंसा से बचना । यह श्रावकोचित हिंसा के त्याग का अणुव्रतात्मक स्वरूप हुआ। प्रथम व्रत के मुख्य ५ अतिचार पढमे अणुव्वयम्मि, थूलगपाणाइवाय विरईओ। . आयरियमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसंगेणं ॥ वह-बंध-च्छविच्छेए-अइभारे-भत्तपाण वुच्छेए। पढम वयस्सअइयारे-पडिक्कमे देवसि सव्वं ।। -स्थूल प्राणातिपात विरमणरूप प्रथम अणुव्रत के पालने में अप्रशस्त राग-द्वेष-क्रोधादि के कारण या प्रमादादि के कारण जिस किसी भी अतिचारों का आचरण किया हो जैसे कि वध-बंधादि चार। १ वध- राग द्वेष-लोभादिवश, स्वार्थ या प्रमादादि नोकर-चाकर मजदूर-कामगारादि मनुष्य तथा गाय-भैंस-बैलादि पशुओं को निर्दयता पूर्वक मारना-पीटना या वध करना। बंध-नोकर चाकर-मजदूर-तथा पशुओं को गाढ बंधन से बांधना। ३. छविच्छेद- मनुष्यों में नोकर चाकर-मजदूरादि तथा पशुओं में घोडे, बैल-ऊंट आदि के शरीर के अंगोपांग का छेदन करना, काटना आदि। . अतिभारारोपण- लोभ या स्वार्थवश नोकर-मजदूर-या जानवर पर या उनके द्वारा खिंची जाती गाडी या टांगा आदि पर प्रमाण से ज्यादा भार (बोझा) रखना, फिर मारकर दौडाना। भत्तपाण वुच्छेद- भोजन का समय हो जाने पर भी मनुष्य-नोकर-चाकर-मजदूर तथा गाय-भैंस घोडा आदि जानवरों को स्वार्थवश भूखे रखना, पूरा भोजन न देना, कम खिलाना और ज्यादा काम लेना ये भी अतिचार है। साधक को ये पाँचो अतिचार (दोष) अच्छी तरह जानकर इससे बचना चाहिए। देश विरतिघर श्रावक जीवन ६२७
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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