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जीव है । तथा हाथी, घोडा, ऊंट, बैल, बकरी, कुत्ता, बिल्ली, सांप, नेवला, मेंढक आदि ये पंचेन्द्रिय तिर्यंच प्राणी है । तथा मनुष्य आदि ये भी पंचेन्द्रिय प्राणी हैं । इन स्थूल निरपराधी त्रस जीवों को जानबूझकर संकल्पपूर्वक मारने की बुद्धि से मारना यह हिंसा है । और न मारने की प्रतिज्ञा यह 'प्राणातिपात विरमण व्रत' रूप प्रथम अणुवत-अहिंसा का स्वरूप
पृथ्वी-पानी-अग्नि-वायु-और वनस्पतिकाय ये पाँच स्थावर (एकेन्द्रिय) जीव कहलाते हैं। इन स्थावर जीवों की सर्वथा हिंसा न करने की प्रतिज्ञा तो चारित्रवान महाव्रतधारी साधु ही कर सकता है। श्रावक इन स्थावर की सर्वथा हिंसा न करने का पच्चक्खाण नहीं कर सकता है। उपयोग पूर्वक इनकी जयणा पालता है। अतः प्रथम अणुव्रत में स्थावर जीवों की जयणा और त्रस जीवों को न मारने की प्रतिज्ञा है । अतः स्थूलप्राणातिपात विरमण व्रत कहलाता है। साधु भगवंतों के महाव्रत में यही व्रत सूक्ष्म से सर्व जीवों की सूक्ष्मतः हिंसा के त्याग पूर्वक होने से महाव्रत कहलाता है।
श्रावक की मात्र सव्वा वसा (विश्वा) दया
। २० विश्वा जीव हिंसा (साधु के लिए) १० विश्वा सूक्ष्म जीवों की १० विश्वा स्थूल जीवों की
१० विश्वा स्थूल जीवों की हिंसा (श्रावक के लिए)
संकल्प से (५ विश्वा) आरम्भ से (५ विश्वा) अपराधी की हिंसा (२ ॥ विश्वा) निरपराधी की हिंसा (२ ॥ विश्वा)
सापेक्ष हिंसा (१ । विश्वा) . निरपेक्ष हिंसा (१ । विश्वा)
१० स्थूल और + १० सूक्ष्म = २० विश्वा हिंसा का सर्वथा संपूर्ण रूप से त्याग करके पूर्ण अहिंसा का पालन तो संसार का त्यागी साधु ही कर सकता है । संसारी गृहस्थ १० विश्वा सूक्ष्म जीवों की हिंसा से नहीं बच सकता। अतः वह १० विश्वा स्थूल त्रस जीवों की हिंसा से बचने का विचार करता है। उसमें ५ विश्वा आरम्भ-समारंभ की हिंसा है। मकान बांधना, खेती करना, रसोई करना आदि आरंभ हिंसा से नहीं बच सकता। अब शेष ५ विधा में इसे "मैं मारूं" ऐसी संकल्प हिंसा से श्रावक बच सकता है । संकल्प हिंसा में भी अपराधी और निरपराधी के दो भेद हैं । अपराधी को दण्ड देने आदि की हिंसा से
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__आध्यात्मिक विकास यात्रा