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________________ के सामने मानता (बाधा) के कारण अभक्ष्य नहीं चढाना । और पशुबलि, पशुयाग, नरबलि आदि का स्वप्न में भी विचार करना नहीं चाहिए । मदिर-मांसादि कदापि न चढाए। लोकाचार और मात्र व्यावहारिकता के कारण घूमने-देखने जाना पड़ा तो जयणा रखें। औचित्य पालन की जयणा । लेकिन धर्म बुद्धि या श्रद्धा से न मानें, न पूजें । अनुकंपादि में भाग लेना पडे तो जयणा। इस तरह सम्यक्त्व व्रत का स्वरूप सम्यक् प्रकार से जानकर सत्य का शोधक बनना चाहिए । चरम ध्येय मोक्ष प्राप्ति से अरिहंतादि की उपासना करें । और मिथ्यात्व का त्याग करें। और आत्म कल्याण की साधना करें। पाँच अणुव्रतों का स्वरूप पहला अणुव्रत - स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत . निरागो द्विन्द्रियादीनां संकल्पाच्चानपेक्षया। .. हिंसाया विरतिर्या सा, स्यादणुव्रतमादिमम्॥ (धर्मसंग्रह) निरपराधी ऐसे दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियादित्रसजीवों को दांत, चमडे, हड्डी, मांस आदि के लिए “मैं मारूं" इस संकल्पपूर्वक निष्कारण हिंसा करने का त्याग करना, अर्थात् उस जीव के द्रव्य प्राणों का वियोग करने रूप जो हिंसा है उसकी विरति अर्थात् उस हिंसा से बचना, वह हिंसा न करने की प्रतिज्ञा करना ही प्रथम अणुव्रत-प्राणातिपात विरमण व्रत का स्वरूप है । प्राण-१० है । स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घाणेन्द्रिय, चक्षुइन्द्रिय, कणेन्द्रिय ये ५ इन्द्रियाँ, मनबल, वचनबल, कायबल, ये तीन बल श्वासोच्छ्वास और आयुष्य ये दश प्राण है । प्राण को धारण करनेवाला प्राणी, उसमें स्थूल त्रस प्राणिओं के प्राणों का अतिपात अर्थात् नाश करने रूप हिंसा से बचना ही प्राणातिपात विरमण रूप अहिंसात्मक प्रथम अणुव्रत है । प्रमत्त योगात् प्राण व्यपरोपणं हिंसा हिंसा के इस लक्षण से कहा है-प्रमादादि के कारण जीवों के प्राणियों के प्राणों का वियोग करना ही हिंसा है। बस और स्थावर दो प्रकार के जीव हैं। बस में हलन चलन करनेवाले द्विन्द्रियादि २, ३, ४ इन्द्रियवाले विकलेन्द्रिय जीव और पंचेन्द्रिय जीव गिने जाते हैं । उदाहरणार्थ अलसिए, जलो, कृमि आदि दोइन्द्रिय जीव है, चीटि, मकोडा, ईयल, धनेडा, खटमल, जू, लीक आदि तेइन्द्रिय जीव है, और मक्खी, मच्छर, डांस, भंवरे, बिच्छु आदि चउरिन्द्रिय . देश विरतिवर भावक जीवन ६२५
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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