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मिथ्यामत मान्य-रागी द्वेषी देव - देवी न मानना । स्त्री संयुक्त, शस्त्रास्त्र से युक्त देवों को, देवियों को वीतराग अरिहंत के रूप में नहीं मानना चाहिए। अन्यत्र देव - देवियों की मानता, आखडी - बाधा नहीं माननी चाहिए ।
२४ जिन के यक्ष-यक्षिणि, शासन के अधिष्ठायक, तथा मणिभद्र वीर आदि को रक्षक देव के रूप में ही मानना ।
वीतराग सर्वज्ञ की संतान - प्राप्ति तथा शादी - धन आदि संबंधी मानता न मानें। चमत्कारों से आकर्षित होकर रागी -द्वेषी देव-देवी को न मानना न उनके तीर्थों में जाना, न मंदिरों में जाना, न मंत्र जापादि करना, न अनुष्ठान आदि करना ।
होली, बलेव, शील सातम, नवरात्री आदि त्यौहारों को न मानना, न मनाना । परन्तु कर्मक्षयकारक – पर्युषण - ज्ञान पंचमी आदि पर्वों को मानना, आराधना ।
मंगलवार और शनिवार आदि न करना, फरालिया उपवास आदि न करना, परन्तु पर्व तिथि की आराधना शुद्ध उपवास, निर्जल उपवास आदि से करनी ।
शास्त्र सीखना, पढना, मानना आदि दोषरूप है । याग भोगादि न करना, कुंभस्नानादेि न करना, श्राद्ध, दान आदि न करना । इत्यादि सम्यक्त्व व्रत के अतिचारों से पूर्णतः बचने का ध्यान रखना । और शुद्ध श्रद्धा से रहना ।
आभिनिवेशिकादि पाँच प्रकार के मिथ्यात्व का सही स्वरूप समझकर उससे बचना । मिथ्यात्वगत दोषों को लगने न देना । और सम्यक्त्व के शुद्ध यथार्थ स्वरूप को समझकर पालना । सभीं भगवान एक ही है इसमें क्या है? केवल नाम ही भिन्न-भिन्न है। वैसे ही सभी धर्म एक ही है। इसमें क्या है ? कोई भेद नहीं है ? सभी धर्म मोक्ष में ही ले जानेवाले हैं ? केवल नाम भिन्न भिन्न है। चाहे ये धर्म आराधो या कोई भी धर्म आराध | चाहे इस भगवान को मानो या चाहे उस भगवान को मानो । अन्त में सभी एक ही है । ऐसी मिश्र वृत्ति भी नहीं रखनी चाहिए। क्योंकि यह भी मिथ्यात्व का ही स्वरूप है । अतः इस मिथ्यात्व से, मिथ्या विचार से जरूर बचना चाहिए। सभी को मिश्र करके सच्चे और झूठे की एक खिचडी नहीं करनी चाहिए। आजकल के बन बैठे हुए अपने आपको भगवान मानने-मनानेवालों को किसी भी हालत में भगवान नहीं मानना चाहिए । माने तो महामिथ्यात्व है । अन्य मती के भगवान-देव-देवी के प्रसाद आदि को भी नहीं लेना, नहीं खाना चाहिए। कुल देवता - गोत्र देवता आदि के सामने या अन्यत्र भी देव - देवी
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आध्यात्मिक विकास यात्रा